मेरे चित्र पर दो टिप्पणियाँ की थी! गेहूं जामे गजल सा, सरसों जैसे छंद | जामे में सोहे भला, सूट ये कालर बंद || प्रत्युत्तर दें “उत्तर” सुटवा कालर बंद || उसी के उत्तर में पाँच दोहे समर्पित कर रहा हूँ! -0-0-0-0-0- वृद्धावस्था में कहाँ, यौवन जैसी धूप।१। गेहूँ उगता ग़ज़ल सा, सरसों करे किलोल। बन्द गले के सूट में, ढकी ढोल की पोल।२। मौसम आकर्षित करे, हमको अपनी ओर। कनकइया डग-मग करे, होकर भावविभोर।३। कड़क नहीं माँझा रहा, नाज़ुक सी है डोर। पतंग उड़ाने को चला, बिन बाँधे ही छोर।४। पत्रक जब पीला हुआ, हरियाली नहीं पाय। ना जाने कब डाल से, पका पान झड़ जाय।५। |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
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मंगलवार, 21 फ़रवरी 2012
"आदरणीय “रविकर” जी को समर्पित-पाँच दोहे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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वाह......
जवाब देंहटाएंदोहों में वार्तालाप
वह:सभी दोहे बहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएंसही उत्तर दिया सभी दोहे लाजबाब ...
जवाब देंहटाएं:):)Bahut badhiya :).
जवाब देंहटाएंpadh kar aise dohe
जवाब देंहटाएंman meraa bhee dole
main bhee likh doon
kuchh aise hee dohe
बहुत अच्छा लगा ये वार्तालाप.
जवाब देंहटाएंमाता होय कुरूप अति, होंय पिता भी अंध |
जवाब देंहटाएंवन्दनीय ये सर्वदा, अतिशय पावन बंध ||
बंध = शरीर
उच्चारण अतिशय भला, रहे सदा आवाज |
शब्द छीजते हैं नहीं, पञ्च-तत्व कर लाज ||
देव आज देते चले, फिर से पैतिस साल |
स्वस्थ रहेंगे सर्वदा, नौनिहाल सौ पाल ||
वाह बहुत बढ़िया प्रस्तुति ....
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा ....
जवाब देंहटाएंशब्द नहीं हैं इस अभिव्यक्ति के लिए ..वाह बहुत बहुत बहुत अच्छा ..
जवाब देंहटाएंkalamdaan.blogspot.in
वाह...दमदार उत्तर...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति ....
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी...खूबसूरत दोहे...वृद्ध हों आपक़े दुश्मन...
जवाब देंहटाएंरविकर जी की टिप्पणी का सुंदर दिया जबाब
जवाब देंहटाएंसभी दोहे अच्छे लगे,हम हो गए लाजबाब...
बहुत बेहतरीन प्रस्तुति...शास्त्री जी बधाई
बहुत अच्छे लगे सारे दोहे|
जवाब देंहटाएंकाश की ऐसा प्रत्युत्तर हमें भी मिला होता तो हमारा अहोभाग्य होता ..:) रविकर जी के दोहे का जवाब लाजवाब है...
जवाब देंहटाएंडॉ.नूतन गैरोला जी!
हटाएंदोहे तो मैंने लिखे हैं।
रविकर जी को तो समर्पित किये हैं!
--
दो दोहे आपके लिए भी है न!
नूतन गैरोला नहीं, करती हैं परिहास।
इसीलिए उनके लिए, लिखा नहीं कुछ खास।१।
घर के बड़े बुजुर्ग को, जो देते सम्मान।
उनका देश-समाज में, बढ़ जाता है मान।२।
बहुत अच्छा लगा .. आपका बहुत बहुत धन्यवाद .... अब तो आपसे दोहे लिखवाने के लिए कुछ मजाक वजाक का सहारा लेना पड़ेगा... :)).. ...दूसरा दोहा तो बेहद सुन्दर और बहुत अच्छे भावों को ले कर बनाया है...जो बिलकुल सही है .. ... सादर
हटाएंsundar!
जवाब देंहटाएंरूप चंद्र रस पान करें , रवि रतनारे नैन
जवाब देंहटाएंसरसों सरसी सुर सधे,मधुर मधुर मधु बैन.
गेहूँ गाय गीत गज़ल, सरसों करे सिंगार
नील वसन में श्याम जू,मानो आये द्वार.
शौक हुआ सिलवा लिया, बंद गले का सूट
सजनी गर तारीफ करें , पैसे जायें छूट.
नेह रेशमी डोर फिर , माँझे का क्या काम
प्रेम पतँगिया झूमती, ज्यों राधा सँग श्याम.
ऋतु आवत जावत रहे, पतझर पाछ बसंत
प्रेम पत्र कब सूखता ? इसकी आयु अनंत.
शास्त्री जी व रविकर जी को सादर............
जबरदस्त ये भाव हैं, निगमागम का रूप ।
जवाब देंहटाएंतन-मन मति निर्मल करे, कुँवर अरुण की धूप ।।
दिनेश की टिप्पणी - आपका लिंक
dineshkidillagi.blogspot.com
इन दोहों ने तो गजब ही ढा दिया। बेहतरीन।
जवाब देंहटाएंमौसम आकर्षित करे, हमको अपनी ओर।
जवाब देंहटाएंकनकइया डग-मग करे, होकर भावविभोर।३।
रविकर जी से सहमत .सौन्दर्य का पल्लवन है बुढापा .'भले पत्ता टूटा डाल से ले गई पवन उडाय,अबके बिछुड़े कब मिलें ,दूर पड़ेंगें जाय '/'माली आवत देख के कलियाँ करें पुकार ,फूली फूली चुन लई,कल्ल ,हमारी बार .'
सहमत नहीं हूँ मैं जीवन की निस्सारता से .क्षण भंगुरता से .एक क्षण में भरपूर जीवन होता है जीवन का नखलिस्तान पल दो पल का ही होता है जो ताउम्र प्रिय लगता है , इसलिए .
नेह रेशमी डोर फिर , माँझे का क्या काम
जवाब देंहटाएंप्रेम पतँगिया झूमती, ज्यों राधा सँग श्याम.
ऋतु आवत जावत रहे, पतझर पाछ बसंत
प्रेम पत्र कब सूखता ? इसकी आयु अनंत.
सहमत हैं इस फलसफे से हम भी अरुण कुमार निगम जी के .
आकाशवाणी सूरतगढ़ (कॉटन सिटी चैनल) आज आपकी सेवा करते हुए ३१ वर्ष का हो गया है .इस केंद्र व इस जिले (श्री गंगानगर ) का प्रथम उद्ध्घोषक होने के नाते मेरी सेवायों को सभी सुनने वालों का भरपूर प्यार मिला है और मिल रहा है .इस अवसर पर आप सभी को मेरी तरफ से हार्दिक बधाई,धन्यवाद् .शुभकामनाएं .आशा करता हूँ आपका प्यार इसी तरह से मुझे व चैनल को मिलता रहेगा
जवाब देंहटाएंDr.JOGA SINGH KAIT "JOGI"
M.D.ACUPRESSUR
NATUROPATH
SR.ANNOUCER
ALL INDIA RADIO,
SURATGARH
http://drjogasinghkait.blogspot.com
ईमेल-kait_jogi@yahoo.co.in
dr.kait.jogi@gmail.com
DRKAIT@HOTMAIL.COM
cell no.09414989423
वाह! आप सभी कविश्रेष्ठों को हमारा नमन
जवाब देंहटाएंवाह !! भाव बिभोर कराता वार्तालाप.
जवाब देंहटाएंचर्चामंच पर करते रहें कविवर वार्तागान,
'भ्रमर' बन करते रहें 'हम'भी मधुरस पान.
. बढ़िया उत्तर...निगम जी कविता भी बेहतरीन है...
जवाब देंहटाएंगेहूँ उगता ग़ज़ल सा, सरसों करे किलोल।
जवाब देंहटाएंबन्द गले के सूट में, ढकी ढोल की पोल।२।.........
हा हा हा ...........
क्या कहने
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर