उच्चारण सुधरा नहीं, बना नहीं परिवेश। अँग्रेजी के जाल में, जकड़ा सारा देश।१। भूल गये है मनचले, हिन्दुस्तानी भेष। भौँडे कपड़े धार के, किया कलंकित देश।२। लाँघ रहे सीमाओं को, नंगा कर सिंगार। मोबाइल से सुन रहे, गोरों की झंकार।३। फागुन के परिवेश में, होली का आनन्द। फाग-फुहारों से सजे, गीत हो गये मन्द।४। खुला निमन्त्रण दे रहे, खिलते हुए पलाश। पूरब की ले सभ्यता, और न करो विनाश।५। अम्बुआ, जामुन-नीम भी, देते हैं ये सीख। परदेशों के सामने, माँग रहे क्यों भीख।६। |
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गुरुवार, 1 मार्च 2012
‘‘दोहे-खिलते हुए पलाश’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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खुला निमन्त्रण दे रहे, खिलते हुए पलाश।
जवाब देंहटाएंअपनाकर निज सभ्यता, अब मत करो विनाश।५।
sunder abhivyakti ....
vaah shastri ji kamaal ke maanav sudhaarak dohe prastut kiye hain maja aa gaya.
जवाब देंहटाएंkamal ki baat kahee hai aapne guru jee!
जवाब देंहटाएंसुंदर दोहे....
जवाब देंहटाएंन अंग्रेज, न भारतीय, बस वर्णसंकर होकर रह गये हैं।
जवाब देंहटाएंखुला निमन्त्रण दे रहे, खिलते हुए पलाश।
जवाब देंहटाएंपूरब की ले सभ्यता, और न करो विनाश।५।
अम्बुआ, जामुन-नीम भी, देते हैं ये सीख।
परदेशों के सामने, माँग रहे क्यों भीख।६
वाह..!
अम्बुआ, जामुन-नीम भी, देते हैं ये सीख।
जवाब देंहटाएंपरदेशों के सामने, माँग रहे क्यों भीख''''
वाह....बहुत खूब सुंदर रचना.....
खुला निमन्त्रण दे रहे, खिलते हुए पलाश।
जवाब देंहटाएंपूरब की ले सभ्यता, और न करो विनाश।५।
अम्बुआ, जामुन-नीम भी, देते हैं ये सीख।
परदेशों के सामने, माँग रहे क्यों भीख।६।
्क्या खूब कहा है…………शानदार
होली के रंग ऐसे भी गिरने चाहिये
सामने वालों के चेहरे पीले पडने चाहिये
सुंदर दोहे.सुंदर रचना.....
जवाब देंहटाएंसार्थक दोहे ...
जवाब देंहटाएंफुहार और फटकार एक साथ!!!
जवाब देंहटाएं:-)
सादर.
खुला निमन्त्रण दे रहे, खिलते हुए पलाश।पूरब की ले सभ्यता, और न करो विनाश।५।
जवाब देंहटाएंबढ़िया संदेशपूर्ण रचना !
मलें कालिख
जवाब देंहटाएंकहते कर्णधार
चिंतित देश
"अम्बुआ, जामुन-नीम भी, देते हैं ये सीख
जवाब देंहटाएंपरदेशों के सामने, माँग रहे क्यों भीख"
अति सुन्दर,मनभावन व प्रेरणा दायक दोहे.... होली की शुभ कामनाएं.
बहुत ही अच्छा लिखा है.....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर दोहे.
जवाब देंहटाएंउच्चारण सुधरा नहीं, बना नहीं परिवेश।
जवाब देंहटाएंअँग्रेजी के जाल में, जकड़ा सारा देश।१।
कितने शहरी हो गए लोगों के ज़ज्बात ,
हिंदी भी करने लगी अंग्रेजी में बात .
अव्वल रचना है शाष्त्री जी की .