आई बसन्त-बहार, चलो होली खेलेंगे!!
रंगों का है त्यौहार, चलो होली खेलेंगे!!
बागों में कुहु-कुहु बोले कोयलिया,
धरती ने धारी है, धानी चुनरिया,
पहने हैं फुलवा के हार,
चलो होली खेलेंगे!!
हाथों में खन-खन, खनके हैं चुड़ियाँ.
पावों में छम-छम, छनके पैजनियाँ,
चहके हैं सोलह सिंगार,
चलो होली खेलेंगे!!
कल-कल बहती है, नदिया की धारा.
सजनी को लगता है साजन प्यारा,
मुखड़े पे आया निखार,
चलो होली खेलेंगे!!
उड़ते अबीर-गुलाल भुवन में,
सिन्दूरी-सपने पलते सुमन में,
महके है मन में फुहार!
चलो होली खेलेंगे!!
|
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
गुरुवार, 21 मार्च 2013
"चलो होली खेलेंगे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि ...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
तैयारी पूरी है अबकी...
जवाब देंहटाएंखेलो जी आप होली, बढिया रचना है।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय -
हम भी आ रहे हैं खटीमा, होली खेलने..
जवाब देंहटाएंहोली पर बहुत ही बढियाँ प्रस्तुति,आभार आदरणीय.
जवाब देंहटाएंहोली पर रंगीन छटा बिखेरती सुंदर प्रस्तुति,,,,
जवाब देंहटाएंRecent post: रंगों के दोहे ,
होली की शुभकामनाएँ ! सुंदर रचना..
जवाब देंहटाएंहोली का अनोखा रंग आपकी ये प्रस्तुति बहुत सुंदर होली कि अग्रिम बधाई हो
जवाब देंहटाएंहोली के रंगों में सराबोर रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना, बधाई.
जवाब देंहटाएंबड़ा कोमलता पूर्ण होली-गीत !
जवाब देंहटाएंहोली की अग्रिम वधाई !
रंगों से खेलने और खेलाने की कला आपमें अप्रतिम है गुरूदेव! होली की अग्रिम हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंरंग और रस से परिपूर्ण रहे होली !
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ...
पधारें "चाँद से करती हूँ बातें "
bahut badhiya bina holi khele chain kahan?
जवाब देंहटाएंहोलीमय रचना के लिए बधाई ,गुरु जी
जवाब देंहटाएंकभी कभी कोई एक पंक्ति ऐसा मन को छूती है, कि दिल बाग बाग हो जाता है...
जवाब देंहटाएंधरती ने धारी है धानी चुनरिया -
इतना मधुर है, कि पढ़कर ही कान में रस घोल रहा है :)
आपकी इस उत्कृष्ट रचना को अपने निम्न फेसबुक पेज पर साझा कर, बिना होली के ही रंग बिखेर रही हूँ :) सूचनार्थ.
https://www.facebook.com/pages/%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%82-%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%80-%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A5%80-%E0%A4%B9%E0%A5%82%E0%A4%81/151949304899749?ref=hl