देखो कितना भिन्न है, आभासी संसार।
शब्दों से लड़ते
सभी, लेकर क़लम-कटार।।
ज़ालजगत पर हो रही,
चिट्ठों की भरमार।
गीत, कहानी-हास्य
की, महिमा अपरम्पार।।
पण्डे-जोशी को
नहीं, खोज रहा यजमान।
जालजगत पर हो रहा, ग्रह-नक्षत्र
मिलान।।
नवयुग में सबसे
बड़ा, ज्ञानी अन्तर्जाल।
इसकी झोली में भरा,
सभी तरह का माल।।
स्वाभिमान के साथ
में, रहो सदा आनन्द।
अपने बूते पर लिखो,
सभी विधा सानन्द।।
|
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शनिवार, 30 मार्च 2013
"अन्तरजाल-सभी तरह का माल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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कागज कलम का स्थान अब कीबोर्ड लेता जा रहा है,बहुत ही सार्थक प्रस्तुति,आभार आदरणीय.
जवाब देंहटाएंsundar aur sarthak prastuti, "PANDE JOSI FAIL HO GAYE, COMPUTER HAI PAS,KHUD PAR HI VISHWAS KARO,CHOD PARAYEE AAS..."
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा है आपने .सार्थक प्रस्तुति मोदी संस्कृति:न भारतीय न भाजपाई . .महिला ब्लोगर्स के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MAN
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक रचना, सब उपलब्ध है इस अंतर्जाल पर !
जवाब देंहटाएंवाकई इन्टरनेट असीमित संभावनाओं का माध्यम बन चुका है, अच्छे दोहे.
जवाब देंहटाएंबहुत सही सलाह दी आपने. सुंदर दोहे.
जवाब देंहटाएंरामराम.
badhiya ...
जवाब देंहटाएंसब खोज रहे जगहें अपनी।
जवाब देंहटाएंएक दम सत्य वचन
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक रचना,
जवाब देंहटाएंसच कहते सुन्दर दोहे
जवाब देंहटाएंनवयुग में सबसे बड़ा, ज्ञानी अन्तर्जाल।
जवाब देंहटाएंइसकी झोली में भरा, सभी तरह का माल।।
बहुत सुन्दर...
बहुत सटीक सन्देश...आभार
जवाब देंहटाएंसार्थक और सटीक दोहे महोदय .....
जवाब देंहटाएंसाभार....
अपने बूते पर लिखो...बात में दम है...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति!!
जवाब देंहटाएंपधारें कैसे खेलूं तुम बिन होली पिया...