मित्रों!
यह रचना आज से डेढ़ साल पहले लिखी थी!
कल हमारा टॉम हमसे विदा हो चुका है।
आज उस को इंगित करके लिखी गयी
टॉम-फिरंगी प्यारे-प्यारे।
दोनों चौकीदार हमारे।।
हमको ये लगते हैं अच्छे।
दोनों ही हैं सीधे-सच्चे।।
जब हम इनको हैं नहलाते।
ये खुश हो साबुन मलवाते।।
बाँध चेन में इनको लाते।
बाबा कंघी से सहलाते।।
इन्हें नहीं कहना बाहर के।
संगी-साथी ये घरभर के।।
ये दोनों हैं बहुत सलोने।
सुन्दर से जीवन्त खिलौने।।
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गुरुवार, 18 अप्रैल 2013
"टॉम-फिरंगी प्यारे-प्यारे..." (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत दुख हुआ जानकर, आत्मीयता हो जाती है।
जवाब देंहटाएंबहुत दुख होता है
जवाब देंहटाएंइस दुख पर मेरी संवेदनायें।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना पर बधाई गुरूदेव।
इनका जाना बहुत दुख देता है... :(
जवाब देंहटाएं~सादर!!!
बहुत दुःख होता है सबके प्यार में बंधे इन जीवों के हमेशा के लिए दूर चले जाने पर ...
जवाब देंहटाएंघर के सदस्य ही बन जाते हैं ये भी..... दुखद
जवाब देंहटाएंsad....
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना,**** जीवों के हमेशा के लिए दूर चले जाने पर बहुत दुःख होता है
जवाब देंहटाएंजानवर प्यार के अहसास को भूलने नहीं देते
जवाब देंहटाएंत्याग विश्वास कि मूर्ति
तेरे मन में राम [श्री अनूप जलोटा ]
दुखद .. :(
जवाब देंहटाएंmarmik
जवाब देंहटाएंaisa lagta hai ki koi ghar ka sadasya chala gaya ho..!!
जवाब देंहटाएं