मेरा बस्ता कितना भारी।
बोझ उठाना है लाचारी।।
मेरा तो नन्हा सा मन है।
छोटी बुद्धि दुर्बल तन है।।
पढ़नी पड़ती सारी पुस्तक।
थक जाता है मेरा मस्तक।।
रोज-रोज विद्यालय जाना।
बड़ा कठिन है भार उठाना।।
कम्प्यूटर का युग अब आया।
इसमें सारा ज्ञान समाया।।
मोटी पोथी सभी हटा दो।
बस्ते का अब भार घटा दो।।
एक पुस्तिका पेन चाहिए।
हमको मन में चैन चाहिए।।
कम्प्यूटर जी पाठ पढ़ायें।
हम बच्चों का ज्ञान बढ़ाये।
इतने से चल जाये काम।
छोटा बस्ता हो आराम।।
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सोमवार, 29 अप्रैल 2013
‘‘मेरा बस्ता कितना भारी’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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सब बच्चों को चैन चाहिये..
जवाब देंहटाएंहमारे देश कि स्कूली शिक्षा के तरीके पर प्रहार करती सुन्दर बाल कविता !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ,बच्चों की तकलीफे बताती रचना !
जवाब देंहटाएंlatest postजीवन संध्या
latest post परम्परा
बहुत सुंदर प्रस्तुति.... स्कूली शिक्षा के बोझ तले दबे बच्चे ..सब को विचार करना होगा.
जवाब देंहटाएंवाकाई दुखद स्थिति है.
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंएक पुस्तिका पेन चाहिए।
हमको मन में चैन चाहिए।।
बहुत बढ़िया प्रस्तुति प्रासंगिक अर्थ लिए .अधुनातन सन्दर्भ लिए .
अच्छी बाल कविता
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर विचारणीय बाल रचना ,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST: मधुशाला,
खूबसूरत बाल कविता....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बाल कविता | जल्दी से छुटियाँ हो जाएँ तो इस कष्ट से निजात मिले बच्चों को |
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
काश!! बच्चों का दर्द समझे कोई!!
जवाब देंहटाएंsahi bat bojh hlka karna hi pdega ....
जवाब देंहटाएंबिलकुल बच्चों के मन की कही...... सुंदर बाल कविता ..
जवाब देंहटाएंआज बच्चों का बस्ता सच में भारी होता जा रहा है,बहुत ही सुन्दर बाल कविता,आभार आदरणीय.
जवाब देंहटाएंसुंदर बाल-गीत, अच्छा समाधान.....
जवाब देंहटाएंशिक्षा प्रणाली ने बच्चो पर बोझ बढ़ा दिया है ..........पढ़ाई एक आफत नज़र आती है ...........गए वो दिन जब बच्चे खेल -खेल में पढ़ते थे ...............सुन्दर वर्णन आपका ..........
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