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मन में जब उगने
लगे, विष की पापी बेल।
चूहे-बिल्ली का शुरू, तब होता है खेल।।
--
माया नगरी में
बढ़ी, आपस में तकरार।
बड़बोलेपन से
नहीं, लोग मानते हार।।
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एक तीर से हो रहे,
बिना लक्ष्य के वार।
लड़ती हैं नेपथ्य
में, दोनों ही सरकार।।
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दो पाटों के बीच
में, पिसता निरअपराध।
कँगना की अब ओट ले,
रहे निशाना साध।।
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कँगना हो या हो
रिया, या स्वर्गीय सुशान्त।
न्यायालय के न्याय
पर, थोपो मत सिद्धान्त।।
--
अपने मन के सब
यहाँ, बजा रहे हैं ढोल।
बिगड़ गये हैं इसलिए,
दो पक्षों के बोल।।
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अच्छा होता है नहीं,
आपस में टकराव।
आपस की तकरार में,
पीता दूध बिलाव।।
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शुक्रवार, 11 सितंबर 2020
दोहे "दो पक्षों के बोल" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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विडंबना ही कहेंगें, और क्या !
जवाब देंहटाएंअच्छा होता है नहीं, आपस में टकराव।
जवाब देंहटाएंआपस की तकरार में, पीता दूध बिलाव।।
--बहुत सार्थक दोहे आदरणीय सर | हिंदी दिवस की शुभकामनाएं और बधाई
एक तीर से हो रहे, बिना लक्ष्य के वार।लड़ती हैं नेपथ्य में, दोनों ही सरकार।।इन पंक्तियों में महाराष्ट्र का पूरा राजनीतिक परिदृश्य बयाँ हो गया है कल कंगना निश्चय ही राजनीति में होंगी उन्हें ये अवसर भरपूर दिया जाएगा देखते हैं उनके अंदर का एक कलाकार जीतता है यह राजनीति सुंदर रचना शास्त्री जी की
जवाब देंहटाएंkabirakhadabazarmein.blogspot.com
बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएं