निर्दोष से प्रसून भी, डरे हुए हैं आज। चिड़ियों की कारागार में, पड़े हुए हैं बाज। -- अश्लीलता के गान, नौजवान गा रहा, फटी हुई पतलून से, जग को रिझा रहा, भौंडे सुरों के शोर में, सब दब गये हैं साज। चिड़ियों की कारागार में, पड़े हुए हैं बाज।। -- श्वान और विडाल जैसा, मेल हो रहा, नग्नता, निलज्जता का, खेल हो रहा, चैनल समाज की जहाँ हों, लूट रहे लाज। चिड़ियों की कारागार में, पड़े हुए हैं बाज।। -- भटकी हुई जवानी है, भारत के लाल की, ऐसी है दुर्दशा, मेरे भारत-विशाल की, आजाद और सुभाष के, सपनों पे गिरी गाज। चिड़ियों की कारागार में, पड़े हुए हैं बाज।। -- लिखने को बहुत कुछ है अगर लिखने को आयें, लिखकर कठोर सत्य, यहाँ किसको सुनायें, जंगल में लोमड़ी के यहाँ, सिर पे धरा है ताज। चिड़ियों की कारागार में, पड़े हुये हैं बाज।। -- रोती पवित्र भूमि, आसमान रो रहा, लगता है घोड़े बेच के, भगवान सो रहा, अब तक तो मात्र कोढ़ था, अब हो गयी है खाज। चिड़ियों की कारागार में, पड़े हुए हैं बाज।। -- |
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मंगलवार, 22 सितंबर 2020
गीत "सपनों पे गिरी गाज" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सटीक प्रहार आज की स्तिथि पर आ0
जवाब देंहटाएंआदरणीय, बहुत अच्छी रचना ! चिड़ियों की कारागार में बंदी बना है बाज ! इसमें व्यंग्य भरपूर है ! साधुवाद !
जवाब देंहटाएंवर्तमान परिवेश पर करारा व्यंग,सार्थक और सटीक, सादर नमन सर
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार्थक और वर्तमान परिस्थितियों पर आधारित आपकी रचना
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