आश्विन द्वितीया
पूज्य पिता जी का श्राद्ध
--
तर्पण किया श्रद्धा
और श्राद्ध से है आपका,
मेरे पूज्य पिता श्री
आपको नमन है।
जीवन भर आपने जो
प्यार और दुलार दिया,
मन की गहराइयों से
आपको नमन है।
कबी भी अभाव का आभास
नहीं होने दिया,
कर्म के पुजारी पूज्य
तात को नमन है।
रहे नहीं भाग्य के
भरोसे कभी जन्मभर,
उस सुगन्ध वाले पारिजात
को नमन है।
--
आपके ही पथ का
पथिक है सुत आपका,
दिव्य-आत्मा प्रकाश
पुंज को प्रणाम है।
देव के समान सुख बाँटते
रहे जो सदा,
ऐसे पालनहार को तो
कोटिशः प्रणाम है।
जीने के जगत में सिखाये
ढंग आपने,
ईश के समान मेरे
देव को प्रणाम है।
मार्ग सुख सम्पदा
के मुझको बताये सभी,
ऐसी मातृभूमि और पिताजी
को प्रणाम है।
--
|
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
गुरुवार, 3 सितंबर 2020
कवित्त "पूज्य पिताश्री को नमन" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि ...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
नमन व श्रद्धांजलि।
जवाब देंहटाएंपितृ पक्ष (पितर तुष्टि )हमारी अपनी तुष्टि अपने को ही अग्रेसित करना है पितृ शब्द पिता के पिता के पिता .......के मूल स्रोत तक जाता है इस प्रकार हम खुद एक प्रवाहमान धारा है जीवनखण्डों जीवन इकाइयों जीवन की बुनियादी इकाइयों के समुच्चय हैं हम लोग। We always are our genes and environments (ambience and tradition we carry genetically forward .श्रेष्ठ लेखन के नित नूतन आयाम लिए आते हैं हर दिल अज़ीज़ मेरे अज़ीमतर आदरणीय दोस्त शास्त्रीजी ,प्रणाम वीरुभाई के। blogpaksh2025.blogspot.com
जवाब देंहटाएंपितृ पक्ष में पूर्वजों का श्राद्ध शृद्धा से संपन्न करना मनाना (पितर तुष्टि )हमारी अपनी तुष्टि अपने को ही अग्रेसित करना है पितृ शब्द पिता के पिता के पिता ..के परदादा के परदादा के .....के मूल स्रोत तक जाता है इस प्रकार हम खुद एक प्रवाहमान धारा है जीवनखण्डों जीवन इकाइयों जीवन की बुनियादी इकाइयों के समुच्चय हैं हम लोग।लेकिन केवल इतना भर नहीं है श्राद्ध इस परम्परा का संवर्धन है।
जवाब देंहटाएंWe always are our genes and environments (ambience and tradition we carry genetically forward . Observance of Shraddh In Pitri Paksh is enrichments of basic units of life and our roots .
श्रेष्ठ लेखन के नित नूतन आयाम लिए आते हैं हर दिल अज़ीज़ मेरे अज़ीमतर आदरणीय दोस्त शास्त्रीजी ,प्रणाम वीरुभाई के।
blogpaksh2025.blogspot.com:
एक प्रतिक्रिया ,टिपण्णी शास्त्री जी की उल्लेखित रचना पर :
Image result for banyan tree
Image result for banyan tree
Image result for banyan tree
Image result for banyan tree
Image result for banyan tree
Image result for banyan tree
Image result for banyan tree
Image result for banyan tree
Image result for banyan tree
Image result for banyan tree
Image result for banyan tree
Image result for banyan tree
कवित्त "पूज्य पिताश्री को नमन" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
आश्विन द्वितीया
पूज्य पिता जी का श्राद्ध
--
तर्पण किया श्रद्धा और श्राद्ध से है आपका,
मेरे पूज्य पिता श्री आपको नमन है।
जीवन भर आपने जो प्यार और दुलार दिया,
मन की गहराइयों से आपको नमन है।
कभी भी अभाव का आभास नहीं होने दिया,
कर्म के पुजारी पूज्य तात को नमन है।
रहे नहीं भाग्य के भरोसे कभी जन्मभर,
उस सुगन्ध वाले पारिजात को नमन है।
--
आपके ही पथ का पथिक है सुत आपका,
दिव्य-आत्मा प्रकाश पुंज को प्रणाम है।
देव के समान सुख बाँटते रहे जो सदा,
ऐसे पालनहार को तो कोटिशः प्रणाम है।
जीने के जगत में सिखाये ढंग आपने,
ईश के समान मेरे देव को प्रणाम है।
मार्ग सुख सम्पदा के मुझको बताये सभी,
ऐसी मातृभूमि और पिताजी को प्रणाम है।
Pl visit veerujichiththaa.blogspot.com
जवाब देंहटाएंVirendra Sharma
जवाब देंहटाएंToday at 9:27 AM ·
Shared with Public
veerujichiththaa.blogspot.com
पितृ पक्ष में पूर्वजों का श्राद्ध शृद्धा से संपन्न करना मनाना (पितर तुष्टि )हमारी अपनी तुष्टि अपने को ही अग्रेसित करना है पितृ शब्द पिता के पिता के पिता ..के परदादा के परदादा के .....के मूल स्रोत तक जाता है इस प्रकार हम खुद एक प्रवाहमान धारा है जीवनखण्डों जीवन इकाइयों जीवन की बुनियादी इकाइयों के समुच्चय हैं हम लोग।लेकिन केवल इतना भर नहीं है श्राद्ध इस परम्परा का संवर्धन है।
We always are our genes and environments (ambience and tradition we ca… See More
सादर नमन।
जवाब देंहटाएंविनम्र नमन ।
जवाब देंहटाएं