हिन्दी को दे दीजिए, अब उसका अधिकार।।
ओ काशी के सांसद, संसद के शिरमौर।
विदा करो अब देश से, अँगरेजी का दौर।।
है कठिनाई कौन सी, क्यों हो अब लाचार।
पूरे बहुमत की मिली, तुमको है सरकार।।
हिन्दी-हिन्दुस्थान हो, जिस दल का आधार।
हिन्दी को दे दीजिए, अब उसका अधिकार।१।
कहनेभर से तो नहीं, होगा देश महान।
बेमन से मत कीजिए, हिन्दी का गुणगान।।
दशकों से जो सह रही, अपनों के ही दंश।
पोषित कर दो देश में, अब हिन्दी का वंश।।
अब तो है इस देश में, भगवा की सरकार।
हिन्दी को दे दीजिए, अब उसका अधिकार।२।
हिन्दी भाषा के लिए, बदलो अपनी सोच।
बोल-चाल में क्यों हमें, हिंग्लिश रही दबोच।।
निष्ठा से जब तक नहीं, होगा कोई काम।
कैसे तब तक देश का, होगा जग में नाम।।
अपनी भाषा का करो, दुनिया में विस्तार।
हिन्दी को दे दीजिए, अब उसका अधिकार।३।
हिन्दी के सेवक कहाँ, राजनीति के सन्त।
अँगरेजी के रंग में, रँगे हुए गुणवन्त।।
हिन्दी भाषा का भला, कैसे हो उत्थान।
अमरीका-इंग्लैण्ड सा, लगता हिन्दुस्तान।।
देवनागरी पर करे, इंगलिश ससत् प्रहार।
हिन्दी को दे दीजिए, अब उसका अधिकार।४।
हिन्दी का जब कर रहे, अपने लोग अनर्थ।
निजभाषा तब देश में, कैसे बने समर्थ।।
करते नौकरशाह हैं, हिन्दी पर आघात।
हिन्दीजन संघर्षरत, नित्य खा रहे मात।।
जनसेवक भी कर रहे, शब्दों का व्यापार।
हिन्दी को दे दीजिए, अब उसका अधिकार।५।
हिन्दी का दिन बन गया, बस हिन्दी-डे आज।
गोरों के पदचिह्न पर, अब चल पड़ा समाज।।
जिस भाषा में माँगते, सबसे मत का दान।
उस भाषा का चाहिए, होना अब सम्मान।।
किन्तु सितम्बर मास तक, हिन्दी की जयकार।
हिन्दी को दे दीजिए, अब उसका अधिकार।६।
देवनागरी में लिखे, गीता-वेद-पुराण।
अपनी हिन्दी नागरी, भारत माँ का प्राण।।
जिसके पुण्य-प्रताप से, देश हुआ स्वाधीन।
फिर किस कारण से हुई, अपनी हिन्दी क्षीण।।
हिन्दी है सबसे सरल, कहता है संसार।।
हिन्दी को दे दीजिए, अब उसका अधिकार।७।
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सोमवार, 14 सितंबर 2020
दोहागीत "हिन्दी पर आघात" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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कमाल का दोहागीत 👍
जवाब देंहटाएंनायाब , बेहद सुंदर प्रस्तुति... नमन 🙏
हिन्दी दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🌺🙏
कृपया मेरी इस लिंक पर पधार कर मुझे अनुगृहीत करें...
http://ghazalyatra.blogspot.com/2020/09/2020.html?m=1
प्रेरक सामयिक रचना
जवाब देंहटाएंहिंदी का हर दिन हो यही शुभकामनाएं हैं हमारी!
हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं सर!
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसच में हिन्दी अपनों के दंश से ही नही उभर रही है ...
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक और सामयिक दोहे सभी ...
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (15-9 -2020 ) को "हिंदी बोलने पर शर्म नहीं, गर्व कीजिए" (चर्चा अंक 3825) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
सुन्दर और सामयिक दोहे
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर, सार्थक सृजन!
जवाब देंहटाएंहिंदी के प्रति अथाह श्रृद्धा प्रकट करते हिंदी को समर्पित आह्वान करते सुंदर दोहे।
जवाब देंहटाएंसादर।