आज फिर किसी ब्लागर मित्र को टिपियाते हुए फिर से ये गज़ल बन गई है-
मगर दिल-जिगर में बहुत जोर-दम हैं।
मगर उनको एतबार खुद पे ही कम हैं।
कदम दर कदम पर भरे पेंच-औ-खम हैं।
अकेले नही इस जमाने में हम हैं। |
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शुक्रवार, 4 सितंबर 2009
‘‘अकेले नही इस जमाने में हम हैं’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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बढ़िया रचना बनी जी...........
जवाब देंहटाएंअभिनन्दन !
हमें दर्द पीने की आदत है जानम,
जवाब देंहटाएंbahut khoob
dard ko peene waala hee dard ko kam kar sakata hai
भरोसा हमें अपने जज़्बात पर है,
जवाब देंहटाएंमगर उनको एतबार खुद पे ही कम हैं।
jee ekdum sahi kaha hai aapne...... hamein apne emotions pe bharosa to hota hai..... magar logon ko khud pe hi yaqeen nahi hota hai.....
bahut hi achchi kavita.....
बहुत खूब अच्छा लगा.........
जवाब देंहटाएंजहाँ चाह है वही राह है.
जवाब देंहटाएंसुंदर भाव..बधाई!!!
बहुत अच्छी लगी आपकी ये ख़ूबसूरत रचना! एक एक पंक्तियाँ सच्चाई बयान करती है! बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंख़ूबसूरत रचना!
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह से फ़िर से एक बहुत सुंदर रचना पढने को मिली.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
bhai
जवाब देंहटाएंbahut mast likha hai aapne .badhai!!
भरोसा हमें अपने जज़्बात पर है,
जवाब देंहटाएंमगर उनको एतबार खुद पे ही कम हैं।
क्या शेर है. बधाई.
रचना सुंदर बन पड़ी है।
जवाब देंहटाएंअन्धेरों-उजालों भरी जिन्दगी में, कदम दर कदम पर भरे पेंच-औ-खम हैं।
जवाब देंहटाएंkya baat hai... bahut khub..!
वाज जी, बहुत लाजवाब.
जवाब देंहटाएंरामराम.
hamen dard peene ki aadat hain janam ..aakale nahin is jamane men hum hain.....aati sunder rachana.
जवाब देंहटाएंशास्त्रीजी,
जवाब देंहटाएंये भरोसा क्या कम है कि सफ़र तनहा नहीं है ?
'हमें दर्द पीने की आदत है जानम,
अकेले नही इस जमाने में हम हैं।'
यकीनन सुन्दर अशार, इज़हार इस यकीन का !
बधाई ! आ.
बहुत सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया ग़ज़ल है
जवाब देंहटाएंहमें दर्द पीने की आदत है जानम,
जवाब देंहटाएंअकेले नही इस जमाने में हम हैं।
वाह वाह बहुत खूब कहा है।
भरोसा हमें अपने जज़्बात पर है, मगर उनको एतबार खुद पे ही कम हैं।
जवाब देंहटाएंउम्दा शेर है ...बहुत शुभकामनायें ..!!