उधार की जिन्दगी लौट आई है फिर से पटरी पर बहुत दिनों से सूद नही दिया था इसीलिए तो साहूकार ब्याज वसूलने आया था आखिर तीन दिनों में सूद चुकता कर ही दिया अभी तो असल चुकाना बाकी है तब तक तो.... अपने को बन्धक रखना ही होगा लेकिन इस बार साहूकार मेरे द्वार पर नही आयेगा बल्कि मुझे ही उसके दर पर जाना होगा कर्जा जो चुकाना है! |
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सोमवार, 7 सितंबर 2009
‘‘कर्जा जो चुकाना है’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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फ़र्ज़ और क़र्ज़ का की बेहतरीन व्याख्या..
जवाब देंहटाएंसुंदर भाव...बधाई..
waah !
जवाब देंहटाएंवाह शास्त्रीजी क्या खूब लिखा है आपने! कर्जा जो चुकाना है..बिल्कुल सही है आपने बखूबी क़र्ज़ और फ़र्ज़ दोनों को व्याख्या किया है! आपकी रचनाएँ तो मुझे हमेशा पसंद है खासकर आज का तो उम्दा रचना है!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना !!
जवाब देंहटाएंसुंदर भाव...बधाई..!!
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन रचना. शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
उधार की जिन्दगी
जवाब देंहटाएंलौट आई है
फिर से पटरी पर
बहुत दिनों से
सूद नही दिया था
" बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति.."
regards
जीवन में ऐसे अनेक मोड़ आते हैं...
जवाब देंहटाएंजहां सच और यथार्थ से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता ।
दुखती रग है ये ।
आभार ।
शास्त्री जी, आप जैसे उत्तम विद्वान् निर्वाद लेखक एवं कवि की अभी न सिर्फ खटीमा को अपितु पूरे भारतवर्ष को बहुत शक्त जरुरत है, अतः साहूकार को भी असल वसूलने आने से पहले दस बार सोचना पडेगा ! हम आपके स्वस्थ और लम्बे जीवन की भगवान से प्रार्थना करते है !
जवाब देंहटाएंजब आपका गद्य पढती हूं तो सोचते हूं कि आप अच्छे गद्य-लेखक हैं जब कविता पढती हूं तो सोचती हूं आप अच्छे कवि हैं. मतलब? आप दोनों ही विधाओं में पारंगत हैं. सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंक्या खूब लिखा है …………ज़िन्दगी और मौत की सच्चाइयो से रुबरु करा दिया …………अभी ऐसी बाते न कीजिये……………इस जहान को आप की बहुत जरूरत है।
जवाब देंहटाएंवैसे ज़िन्दगी का कर्ज़ और मौत का फ़र्ज़ काम दोनो ही मुश्किल है।
आज तो बहुत ही उम्दा लिखा है ।
KARZ ...... BHOOLNA BHI CHAAHO TO BHOOL NAHI SAKTE ....... SUNDAR RACHNA HAI SHASHTRI JI ........ PRANAAM HAI AAPKO
जवाब देंहटाएं'लेकिन इस बार
जवाब देंहटाएंसाहूकार
मेरे द्वार पर नही आयेगा
बल्कि
मुझे ही उसके दर पर जाना होगा
कर्जा जो चुकाना है!'
-जीवन की क्षणभंगुरता को इतने सुन्दर तरीके से व्याख्यायित करने के लिए साधुवाद.
सही कहा आपने। कर्ज किसी भी चीज का हो, एक न एक दिन तो चुकाना ही पडता है।
जवाब देंहटाएंवैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।
सुंदर रचना !!
जवाब देंहटाएंsundar rachana....badhai.
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी,
जवाब देंहटाएंएक कणिका लिख रहा हूँ, बड़े काम की है :
'जो हुआ सो हुआ समझो,
सुख-दुःख सब दया-दुआ समझो,
दांव हारा कि जीत ली बाज़ी,
जिन्दगी, ऐ मियाँ जुआ समझो !'
ब्लॉगर मित्रों की टिपण्णी से जाना कि आप अस्वस्थ हैं ! चिंता न कीजिये, कर्ज और फर्ज तो एक दिन चुक ही जाएगा-- आप चाहें न चाहें ! तो फिक्र किस बात की ?
शीघ्र स्वस्थ होने की कामना सहित ... आ.
शास्त्रीजी बहुत ही सुंदर लगी आज की रचना, सच मै हमे कर्जा चुकाने तो उस के दुवारे ही जाना है, इस लिये कम से कम कर्ज ले.......
जवाब देंहटाएंसाहूकार
जवाब देंहटाएंमेरे द्वार पर नही आयेगा
बल्कि
मुझे ही
उसके दर पर जाना होगा
कर्जा जो चुकाना है!
waaqai mein aisa nahi hota hai..////// saahukaar ab nahi aayega....
bahut hi oomda rachna.......
बहुत बेहतरीन रचना,......सच्चाइयो से रुबरु करा दिया आपने। लाजवाब
जवाब देंहटाएंआप स्वस्थ व प्रसन्न रहें यही कामना है।
जवाब देंहटाएंवर्तमान की EMI की जीवन शैली वालों के लिए सार्थक चेतावनी..अच्छी रचना
जवाब देंहटाएं