तुम शब्दयुक्त हो छन्दमुक्त, बहती हो निर्मल धारा सी। तुम सरल-तरल अनुप्रासयुक्त, हो रजत कणों की तारा सी। आलेख पंक्तियाँ जोड़-तोड़कर बन जाती हो गद्यगीत। संयोग-वियोग, भक्ति रस से, छलकाती हो तुम प्रीत-रीत। उपवन में गन्ध तुम्हारी है, कानन में है मृदुगान भरा। लगती रजनी उजियारी सी, सुख के सूरज से सजी धरा। मेरे कोमल मन के नभ पर, तुम अनायास छा जाती हो। इतनी हो सुघड़-सलोनी सी, सपनों में निशि-दिन आती हो। तुम छन्द-काव्य से ओत-प्रोत, कोमल भावों की रचना हो। जिसमें अनुराग निहित मेरा, वो सुरसवती सी रसना हो। |
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गुरुवार, 11 अगस्त 2011
"कोमल भावों की रचना हो" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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वाह बहुत ही सुन्दर
जवाब देंहटाएंरचा है आप ने
क्या कहने ||
आलेख पंक्तियाँ जोड़-तोड़कर
जवाब देंहटाएंबन जाती हो गद्यगीत।
संयोग-वियोग, भक्ति रस से,
छलकाती हो तुम प्रीत-रीत।
उपवन में गन्ध तुम्हारी है,
कानन में है मृदुगान भरा।
लगती रजनी उजियारी सी,
सुख के सूरज से सजी धरा।
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! आपकी इस लाजवाब रचना की तारीफ़ के लिए अल्फाज़ कम पड़ गए!
तुम अनायास छा जाती है
जवाब देंहटाएंयहाँ शायद हो होना चाहिए |उसे ठीक कर लें |
बहुत कोमल भावों की रचना है ..!!
बहुत अच्छी लगी|
बधाई एवं शुभकामनायें.
वाकई कोमल भाव से सजी है यह गीत.... बहुत सुन्दर....
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर और लाजवाब कविता
जवाब देंहटाएंधन्यवाद्
bahut pyara cover page hai.usse bhi sunder uski prashansa ka geet.bahut behtreen .badhaai.swatantrta divas ki bhi badhaai aaj hi de rahi hoon.
जवाब देंहटाएंbahut sundar dhang se kavita ko paribhashit kiya hai.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावो का समन्वय्।
जवाब देंहटाएंतुम शब्दयुक्त हो छन्दमुक्त,
जवाब देंहटाएंइस पहली पंक्ति में ही आपने सेंचुरी मार दी है।
इसके बाद जो ताबड़तोड़ बैटिंग का मुजाहरा मिया है कि सेहवाग की बेस्ट इनिंग भी फ़ेल हो जाए।
तुम सरल-तरल अनुप्रासयुक्त
इसे पढ़कर जो छवि आंखों के सामने बनती है वह तो ऐसा दृश्य खींचता है कि आंखों से जाने का नाम नहीं लेता। आपने तो आज इन बिम्बों को नया अर्थ दिया है उसका बाखान करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं।
उपवन में गन्ध तुम्हारी है,
जवाब देंहटाएंकानन में है मृदुगान भरा।
लगती रजनी उजियारी सी,
सुख के सूरज से सजी धरा।...
इतनी सुन्दर रचना आप ही लिख सकते हैं !
.
maza aa gaya sahib .
जवाब देंहटाएंइतनी हो सुघड़-सलोनी सी,
जवाब देंहटाएंसपनों में निशि-दिन आती हो
...
bahut khoob
jab kvita itni sunder hai to poora sangrah lazvab hoga hi
जवाब देंहटाएंkavy sangrah ke prkaashn par bdhaai
बहुत ही सुन्दर ... इतनी सुन्दर भावयुक्त रचना आप ही लिख सकते हैं ...
जवाब देंहटाएंसार्थक संदेश देती रचना।
जवाब देंहटाएंतुम शब्दयुक्त हो छन्दमुक्त,
जवाब देंहटाएंबहती हो निर्मल धारा सी।
तुम सरल-तरल अनुप्रासयुक्त,
हो रजत कणों की तारा सी।
रसमयी धार का अमृत प्रवाह यूँ ही वेगवान रहे ,कामना है हमारी .....शुक्रिया सर ./
सुंदर कविता है और पैग़ाम भी बढ़िया
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंbahut khoob shastri ji
जवाब देंहटाएंसुन्दर गीत !
जवाब देंहटाएंवाह बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति...आभार सहित...
जवाब देंहटाएंवाह!वाकई लाजबाव गीत है.....
जवाब देंहटाएं---पर छन्दमुक्त....तो कोई कविता हो ही नहीं सकती...हाँ मुक्तछंद हो सकती है
--और ये 'सुरसवती'---क्या है यह समझ नहीं आया..?
अच्छे रस वाली को सुरसवती कहते हैं जो आपकी समझ में नहीं आयेगी ढॉ. श्याम गुप्त जी।
जवाब देंहटाएंbahut khoob
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएं----श्रीमान जी , रसवती ही काफी है ...क्या कोई कुरसवती भी होती है ...रस आनंद का प्रतीक है .. ...सु या कु नहीं होता .. रसानंद , सुरसानंद नहीं...अशास्त्रीय बात वास्तव में मेरी समझ में नहीं आती....
जवाब देंहटाएं