मुश्किल है पुस्तक छपवाना। रिश्ते रखना बहुत सरल है, मगर कठिन है उन्हें निभाना।। मैदानों में रहने वाले, ऊँचे पर्वत नहीं चढ़ेंगे। उपवन में मस्ताने वाले, बीहड़ वन में नहीं बढ़ेंगे। कलियाँ-सुमन मसलने वाले नहीं जानते पौध उगाना। रिश्ते रखना बहुत सरल है, मगर कठिन है उन्हें निभाना।। लिखने वाले बहुत पड़े हैं, है अकाल पढ़ने वालों का। ढोल पीटने वाले सब हैं, है अकाल मढ़ने वालों का। तू-तू, मैं-मैं के घर में घुस, बहुत कठिन उलझन सुलझाना। रिश्ते रखना बहुत सरल है, मगर कठिन है उन्हें निभाना।। कलयुग की कमजोरी है ये, कंस बहुत हैं श्याम नहीं है। लंका में सब बावन गज के, लेकिन कोई राम नहीं है। कैसे बुने कबीर चदरिया, उलझ गया है ताना-बाना। रिश्ते रखना बहुत सरल है, मगर कठिन है उन्हें निभाना।। रक्षा करते, चोर-उचक्के, आन-बान और शान नहीं है। वानर सेना में अब कोई, हनूमान बलवान नहीं है। छीना-झपटी, मारा-मारी, सस्ता जीवन महँगा खाना। रिश्ते रखना बहुत सरल है, मगर कठिन है उन्हें निभाना।। |
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शनिवार, 19 मई 2012
"उलझ गया है ताना-बाना" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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कलियाँ-सुमन मसलने वाले
जवाब देंहटाएंनहीं जानते पौध उगाना।
रिश्ते रखना बहुत सरल है,
मगर कठिन है उन्हें निभाना।।
बहुत सुंदर रचना,..अच्छी प्रस्तुति
MY RECENT POST,,,,फुहार....: बदनसीबी,.....
rishta karna bahot kathin hai.
जवाब देंहटाएंबिलकुल सच-
जवाब देंहटाएंआभार गुरु जी ||
लिखने वाले बहुत पड़े हैं,है अकाल पढ़ने वालों का।
जवाब देंहटाएं....यह तो यूनिवर्सल फैक्ट है!...जैसे कि सुनने वालों की कमी है, बोलने वालों की कमी नहीं है!
तारीफ के लिए शब्द कम पड़ जायेंगे इस रचना के लिए ....लाजबाब
जवाब देंहटाएंलाज़वाब ! निशब्द कर दिया आपकी रचना ने...आभार
जवाब देंहटाएंसमाज का सत्य व्यक्त करती हुयी कविता..
जवाब देंहटाएंरिश्ते रखना बहुत सरल है,
जवाब देंहटाएंमगर कठिन है उन्हें निभाना।।
यह रचना वाकई लाजबाव है ...
बधाई भाई जी !
तू-तू, मैं-मैं के घर में घुस,
जवाब देंहटाएंबहुत कठिन उलझन सुलझाना।
रिश्ते रखना बहुत सरल है,
मगर कठिन है उन्हें निभाना।।
एक गीत में इतने तेवर मगर पिरोना नहीं सरल ,है ,
सारा गीत उल्लेख्य हर पद -पदांश ,गीतांश विशिष्ठ .बेहतरीन गीत .प्रेशनियता से
भीगा हुआ ,कहीं विरोधी तेवर कहीं विश्लेषण परक कहीं स्वीकरण में झुकने वाले जीवन के स्पंदन में .
क्या बात है सर ! आज अंदाज कुछ बदला -२ सा है ,मानसून अभी आने वाला है ,प्रवाह वेगमयी हो गया ........मुखर समीचीन अभिव्यक्ति ....शुभकामनायें /
जवाब देंहटाएंवाह सही अर्थो में लिखी गई कविता ...बहुत सरल और सच्ची ..
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी, एक एक बात १०० टंच खरी.... रिश्ते आजकल यूँ टूट रहे हैं जैसे कांच के खिलौने....
जवाब देंहटाएंरिश्ते रखना सरल है , मुश्किल है उन्हें निभाना !
जवाब देंहटाएंसत्य वचन !
रिश्ते रखना बहुत सरल है,मगर कठिन है उन्हें निभाना।।
जवाब देंहटाएंsab kuchh to kah diya aapne:)