पूरी दुनिया में चला, मन्दी का है दौर। लेकिन मेरे देश में, महँगाई का ठौर।१। लाभ कमाती तेल में, भारत की सरकार। झेल रही जनता यहाँ, महँगाई की मार।२। सत्ताधारी शान से, सुना रहे फरमान। महँगाई से त्रस्त हैं, निर्धन-श्रमिक-किसान।३। हा-हाकार मचा हुआ, दुर्लभ मिट्टीतेल। मार रसोईगैस की, लोग रहे हैं झेल।४। बापू जी के देश में, बढ़ने लगे दलाल। शिकवा किससे हम करें, पूरी काली दाल।५। महँगाई के युद्ध में, हार गया है राम। जनसेवक ही खा रहा, अब काजू-बादाम।६। |
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मंगलवार, 29 मई 2012
"महँगाई-छः दोहे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सार्थक ,कटाक्ष करते हुए उत्कृष्ठ दोहे बधाई आपको
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया व्यंग्य किया है...
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन रचना ....
सटीक सामायिक दोहे.
जवाब देंहटाएंभारत की समस्या जो दिन ब दिन बढ़ती जा रही. सटीक दोहे, बधाई.
जवाब देंहटाएंआज की व्यवस्था पर बहुत सटीक कटाक्ष....आभार
जवाब देंहटाएंकहो कौन सा काल है,
जवाब देंहटाएंहाल बड़ा बेहाल है।
आज के वक्त में सबको ये महंगाई मार गई ....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंmudda jwalant hai guru jee lekin picture aapne aisee lagaayee hai ki bas ab in cheezon ko dekh ke hee dil behlaa sakte hain!!
जवाब देंहटाएंमुंह की और मसूर की, लाल लाल सी दाल |
जवाब देंहटाएंडाल-डाल पर बैठकर, खाते रहे दलाल |
खाते रहे दलाल, खाल खिंचवाया करते |
निर्धन श्रमिक किसान, मौत दूजे की मरते |
उच्चारण पर हाय, पड़े गर्दन पर फंदा |
सिसक सिसक मर जाय, आज का सच्चा बंदा ||
मुंह की और मसूर की, लाल लाल सी दाल |
जवाब देंहटाएंडाल-डाल पर बैठकर, खाते रहे दलाल |
खाते रहे दलाल, खाल खिंचवाया करते |
निर्धन श्रमिक किसान, मौत दूजे की मरते |
"उच्चारण" पर हाय, पड़े गर्दन पर फंदा |
सिसक सिसक मर जाय, आज का सच्चा बंदा ||
सार्थक सामयिक दोहे....
जवाब देंहटाएंसादर.
sunder aur samyik.....
जवाब देंहटाएंमहँगाई पर चोट की,धन्यवाद हे मित्र!
जवाब देंहटाएंकवि का सचमुच धर्म है,खींचे सच्चा चित्र|
मित्रों चर्चा मंच के, देखो पन्ने खोल |
जवाब देंहटाएंआओ धक्का मार के, महंगा है पेट्रोल ||
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बुधवारीय चर्चा मंच ।