लड़ते खुद की निर्धनता से, भारत माँ के राजदुलारे। बीन रहे हैं कूड़ा-कचरा, बालक कितने प्यारे-प्यारे।। भूख बन गई है मजबूरी, बाल श्रमिक करते मजदूरी, झूठे सब सरकारी दावे, इनकी किस्मत कौन सँवारे। बीन रहे हैं कूड़ा-कचरा, बालक अपने प्यारे-प्यारे।। टूटे-फूटे हैं कच्चे घर, नहीं यहाँ पर, पंखे-कूलर. महलों को मुँह चिढ़ा रही है, इनकी झुग्गी सड़क किनारे। बीन रहे हैं कूड़ा-कचरा, बालक अपने प्यारे-प्यारे।। मिलता इनको झिड़की-ताना, दूषित पानी, झूठा खाना, जनसेवक की सेवा में हैं, अफसर-चाकर कितने सारे। बीन रहे हैं कूड़ा-कचरा, बालक अपने प्यारे-प्यारे।। |
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गुरुवार, 24 मई 2012
"भारत माँ के राजदुलारे" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत मार्मिक ह्रदय स्पर्शी चित्र और रचना
जवाब देंहटाएंदेश की यथार्थ स्थिति को बयान करती रचना |
जवाब देंहटाएंदेश के इन नौनिहालों कि सटीक तस्वीर खींच दी है ... बहुत संवेदनशील रचना
जवाब देंहटाएंसच्चाई को उजागर करती बेहद संवेदनशील रचना
जवाब देंहटाएंकौन सुध ले
जवाब देंहटाएंइस दृश्य को देख देश के भविष्य के प्रति सशंकित हो जाता हूँ।
जवाब देंहटाएंhriday sparshi...:)
जवाब देंहटाएंkabhi mere blog pe aayen sir!
marmik kavita... desh me bachho ke haalaat par prabhavshali kavita
जवाब देंहटाएंमित्रों चर्चा मंच के, देखो पन्ने खोल |
जवाब देंहटाएंआओ धक्का मार के, महंगा है पेट्रोल ||
--
शुक्रवारीय चर्चा मंच ।
VERY NICE..
जवाब देंहटाएंबहुत मार्मिक
जवाब देंहटाएंवस्तुस्थिति यही है
बहुत सुंदर मार्मिक अभिव्यक्ति,
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि,,,,,सुनहरा कल,,,,,
bahut sundar.....
जवाब देंहटाएंAaj ka sach utara hai rachna mein ....
जवाब देंहटाएंलड़ते खुद की निर्धनता से,
जवाब देंहटाएंभारत माँ के राजदुलारे।
बीन रहे हैं कूड़ा-कचरा,
बालक कितने प्यारे-प्यारे।।
कितने हैं किस्मत के मारे ,बालक कितने प्यारे प्यारे ,लोकतंत्र के हैं रखवारे ,घर आँगन के ये उजियारे ,...बहुत अच्छी प्रस्तुति व्यवस्था की चिरौरी करती .बधाई स्वीकार करें . कृपया यहाँ भी पधारें -
बेवफाई भी बनती है दिल के दौरों की वजह . http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
वस्तुस्थिति यही है
जवाब देंहटाएंkadvi sachchaai haiye
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी रचना...
जवाब देंहटाएंसादर.