जो मेरे मन को भायेगा, उस पर मैं कलम चलाऊँगा। दुर्गम-पथरीले पथ पर मैं, आगे को बढ़ता जाऊँगा।। मैं कभी वक्र होकर घूमूँ, हो जाऊँ सरल-सपाट कहीं। मैं स्वतन्त्र हूँ, मैं स्वछन्द हूँ, मैं कोई चारण भाट नहीं। कहने से मैं नहीं लिखूँगा, गीत न जबरन गाऊँगा। दुर्गम-पथरीले पथ पर मैं, आगे को बढ़ता जाऊँगा।। भावों की अविरल धारा में, मैं डुबकी खूब लगाऊँगा। शब्दों की पतवार थाम, मैं नौका पार लगाऊँगा। घूम-घूम कर सत्य-अहिंसा की मैं अलख जगाऊँगा। दुर्गम-पथरीले पथ पर मैं, आगे बढ़ता जाऊँगा।। चाहे काँटों की शय्या हो, या नर्म-नर्म हो सेज सजे। सारंगी का गुंजन सुनकर, चाहे ढोलक-मृदंग बजे। अत्याचारी के दमन हेतु, शिव का डमरू बन जाऊँगा। दुर्गम-पथरीले पथ पर मैं, आगे बढ़ता जाऊँगा।। |
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बुधवार, 23 मई 2012
"शिव का डमरू बन जाऊँगा" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रेरक रचना!...बधाई!
जवाब देंहटाएंभावों की अविरल धारा में,
जवाब देंहटाएंमैं डुबकी खूब लगाऊँगा।
शब्दों की पतवार थाम,
मैं नौका पार लगाऊँगा।
घूम-घूम कर सत्य-अहिंसा
की मैं अलख जगाऊँगा।
दुर्गम-पथरीले पथ पर मैं,
आगे बढ़ता जाऊँगा।।
Bahut shaandar !
शीर्ष कैबिनेट ब्रह्म का, पञ्च मुखी हैं माथ ।
जवाब देंहटाएंचार देवता पक्ष के, नहीं पांचवा साथ ।
नहीं पांचवा साथ, सदा पूंजी-पति राक्षस ।
देता टांग अड़ाय, होय अच्छा बिल वापस ।
शंकर से फिर बोल, छुडाओ मारक राकेट ।
कटे गधे का शीश, ठीक हो शीर्ष कैबिनेट ।।
वाह ...बहुत ही बढि़या भाव संयोजित किये हैं आपने ..आभार ।
जवाब देंहटाएंअत्याचारी के दमन हेतु,
जवाब देंहटाएंशिव का डमरू बन जाऊँगा।
इन सुंदर और दृढ निश्चयी पंक्तियों में छुपे संकल्प के लिए आभार.
बहुत अच्छे भाव सुन्दर संकल्प ,आज कल के पापियों का नाश करने के लिए तो शिव का डमरू बहुत जरूरी है
जवाब देंहटाएंवाह...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर.....
आज बहुत ज़रूरत है किसी शिव के तांडव की......
सादर.
बहुत जोशीले नजर आ रहे हैं
जवाब देंहटाएंसीधे शिव का डमरू ही बजा रहे हैं।
वाह !!
बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...आभार
जवाब देंहटाएंwaah !
जवाब देंहटाएंjai bam bhole !
शिव का डमरू बन जाऊँगा।
जवाब देंहटाएंदुर्गम-पथरीले पथ पर मैं,
आगे बढ़ता जाऊँगा।।
बहुत सुन्दर रचना..
सुन्दर प्रस्तुति:-)
घूम-घूम कर सत्य-अहिंसा
जवाब देंहटाएंकी मैं अलख जगाऊँगा।
sundar bhaav ..!
बहुत सुंदर सार्थक अभिव्यक्ति,
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि,,,,,सुनहरा कल,,,,,
घूम-घूम कर सत्य-अहिंसा
जवाब देंहटाएंकी मैं अलख जगाऊँगा।
बहुत सुंदर भाव ... अच्छी प्रस्तुति
आपकी पोस्ट 24/5/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
चर्चा - 889:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
आपकी कल्पना शक्ति और भावपूर्ण लेखन को बार बार नमन.
जवाब देंहटाएंbum bum bhole...!!
जवाब देंहटाएंमस्त मलंगा, सर पर गंगा।
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक विचार ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएँ!
बहुत बढिया रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर गीत...
जवाब देंहटाएंसादर.