तन में-मन में हो अपनापन। नाम इसी का तो है जीवन।। नागर बन बैठा वनचारी, लगी महकने बगिया सारी। सपनों ने आकार लिया जब, लगी चहकने दुनियादारी। परिणय-प्रणय और उद्दीपन, नाम इसी का तो है जीवन।। भँवरे ने गुंजार सुनाई, सुमन हँसा, कलिका मुस्काई। फूलों का मीठा रस पीने, पंख हिलाती तितली आई। रस की लोभी मधु की मक्खी, पंखुड़ियों का करती चुम्बन। नाम इसी का तो है जीवन।। सन्तानों को पिता प्यार से, पाल रहा कितने दुलार से। आयेगा जब कठिन बुढ़ापा, झुक जायेगी रीढ़ भार से। शिथिल अंग को रामबाण सा, मिल जायेगा रस संजीवन। नाम इसी का तो है जीवन।। |
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शुक्रवार, 11 मई 2012
"नाम इसी का तो है जीवन" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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झुक जायेगी रीढ़ भार से।
जवाब देंहटाएंशिथिल अंग को रामबाण सा,
मिल जायेगा रस संजीवन।
नाम इसी का तो है जीवन।।
सुंदर बहुत सुंदर रचना,......
MY RECENT POST.....काव्यान्जलि ...: आज मुझे गाने दो,...
बहुत सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति...आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ..!!
जवाब देंहटाएंसुंदर जावन व्याख्या ...!!
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें शास्त्री जी ...!
सम्पूर्ण जीवन की बहुत ही सुन्दरता से व्याख्या की है आपने..
जवाब देंहटाएंसुन्दर और सार्थक रचना....
क्या कहने
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
ऐसा अंतराल |
जवाब देंहटाएंकाफी लंबा लगा इन्तजार -|
खूबसूरत प्रस्तुति -
आभार ||
सन्तानों को पिता प्यार से,
जवाब देंहटाएंपाल रहा कितने दुलार से।
आयेगा जब कठिन बुढ़ापा,
झुक जायेगी रीढ़ भार से।
शिथिल अंग को रामबाण सा,
मिल जायेगा रस संजीवन।
बहुत सार्थक कविता लिखी है ...अतिसुन्दर
यार्थार्थ को दर्शाती अभिवयक्ति.....
जवाब देंहटाएंनाम इसी का तो है जीवन।
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने....जीवन अनेक रंगों का मिश्रण है!...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!...आभार!
परिणय-प्रणय और उद्दीपन,
जवाब देंहटाएंनाम इसी का तो है जीवन।।
बड़ा ही मनोहारी गीत रचा है भावन्रों के गुंजन सा इसका स्वर मुखरित अभी भी है .
सावधान :पूर्व -किशोरावस्था में ही पड़ जाता है पोर्न का चस्का
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
हर संजीदा व्यक्ति भविष्य से आस लगाए रहता है। जीवन और सृष्टि-क्रम सचमुच इसी से है।
जवाब देंहटाएंजीवन को बहुत ही सुन्दर ढंग से परिभाषित किया है आपने।
जवाब देंहटाएं