भूख के परिवेश में, गद्दार करते मस्तियाँ
इक महल के वास्ते,
बर्बाद करदी बस्तियाँ
ज़ुल्मो-सितम के
जोर पर, कब्जा किया पाताल में
कैसे सागर पर चलेंगी,
गुर्बतों की कश्तियाँ
भीख में पाकर
सियासत, मुल्क के मालिक हुए
करके मक्कारी इन्होंने
बना ली हैं हस्तियाँ
नाम है जनतन्त्र
लेकिन लोकशाही है कहाँ
झूठ ने सच की जला
डाली समूची अस्थियाँ
“रूप” को अपने छिपाया,
पहन कर खादी धवल,
चोर कितनी शान से लड़ने
लगे हैं कुश्तियाँ
|
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गुरुवार, 1 नवंबर 2012
"बर्बाद करदी बस्तियाँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत खूब कही...सुन्दर शब्द संयोजन और कथ्य भी...
जवाब देंहटाएंअति सुंदर रचना है
जवाब देंहटाएंसभी ब्लॉग पोस्टों एवं टिप्पणियों का बैकअप लीजिए
बहुत उम्दा रचना | बहू खूब |
जवाब देंहटाएंलोग दूसरों को तकलीफ पहुँचाने में जरा भी नहीं हिचकते.
जवाब देंहटाएंबेह्तरीन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंनाम है जनतन्त्र लेकिन लोकशाही है कहाँ
जवाब देंहटाएंझूठ ने सच की जला डाली समूची अस्थियाँ
अब तो सरकार को ही अस्थि विसर्जन की बेला नज़दीक आ रही है दिनानुदिन .यहाँ 365 दिल में 366 घोटाले हो रहें हैं इसीलिए घोटाला मंत्री अलग से नहीं हैं .
काग भगौड़े कहवें हैं :
अपना दल और अपना बल है ,पैंसठ सालों का अनुभव है ,
हमने तो बस यह सीखा है ,भोजन भूखे का संबल है .
(2)
इत्मीनान से भोजन करके ,खूब मौज आराम करो ,
आरोपों से क्या डरना है ,अपना अपना काम करो .
बहुत बढ़िया रचना है शास्त्री जी की .बधाई .