कुछ अपनाते योग को, कुछ अपनाते भोग।१।
कदम-कदम पर घेरतीं, उलझन हमें अनेक।
किन्तु कभी मत
छोड़ना, अपना
बुद्धिविवेक।२।
झुलसा देती ग्रीष्म
में, गोरा-गोरा
रूप।
किन्तु सुहानी सी
लगे, शीतकाल
में धूप।३।
गाँधीटोपी ओढ़ना, सीख गये जब लोग।
अपने हित के वास्ते, करते हैं उपयोग।४।
साम-दाम-भय-भेद का, दर्शन बड़ा विचित्र।
बहके हुए चरित्र की, पोल खोलते चित्र।५।
माटी में लथपथ मिले, नन्हें-नन्हें फूल।
ममता की जलधार से, माँ ही धोती धूल।६।
कंकरीट की पौध को, लगा रहे हैं लोग।
शस्यश्यामला भूमि
में, फैला
कैसा रोग।७।
|
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सोमवार, 26 नवंबर 2012
"दोहा सप्तक" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंगाँधी टोपी ओढ़ना,सीख गये जब लोग।
हटाएंअपने हित के वास्ते, करते हैं उपयोग।
बहुत सुंदर दोहे ,,,
सुन्दर दोहे आदरणीय गुरु जी ||
जवाब देंहटाएंभ्रष्टाचारी व्यवस्था, सबसे प्यारा नोट |
सर्वोपरि अब स्वार्थ है, मिटें विकट अघ खोट |
मिटें विकट अघ खोट, लोट ले इस वैतरणी |
माल मलाई घोट, मूल निकले इस करणी |
जीने का अंदाज, बदल सज्जन नर-नारी |
वही यहाँ खुशहाल, बना जो भ्रष्ट चारी ||
बड़े ही सामयिक दोहे, सत्य उजागर करते हुये..
जवाब देंहटाएंसटीक दोहे ....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और सारगर्भित दोहे...
जवाब देंहटाएंबहुत ही उत्तम उत्कृष्ट दोहे रचे हैं शास्त्री जी एक से बढ़कर एक बहुत ही ज्यादा पसंद आये बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंsamsaamayik dohe .. sundar
जवाब देंहटाएंbahut hee sundar dohe
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंकंकरीट की पौध को, लगा रहे हैं लोग।
शस्यश्यामला भूमि में, फैला कैसा रोग।७।
फुलवारी का शौक़ीन मिला हर घर पथ्थर का बना हुआ ,
कहता है फूंक फूंक गजलें शायर दुनिया का हुआ ,
घर तक आ पहुंचा है साहिब एक शातिर राह में मिला हुआ ....
बहुत खूब हैं भाव और अर्थ सागर के दोहे शास्त्री जी .बधाई .
कदम-कदम पर घेरतीं, उलझन हमें अनेक।
जवाब देंहटाएंकिन्तु कभी मत छोड़ना, अपना बुद्धिविवेक।२।
समसामयिक दोहे ।