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बहुत सुंदर ग़ज़ल.......
जवाब देंहटाएंक्या कहने
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं"तुम बिन नही सुहाता कुछ भी इस असार संसार में"
जवाब देंहटाएंक्या बात कही है आपने ........सादर साभार !!!
बहुत ख़ूब!
जवाब देंहटाएंआपकी यह सुन्दर प्रविष्टि आज दिनांक 05-11-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1054 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
बहुत ख़ूब!
जवाब देंहटाएंआपकी यह सुन्दर प्रविष्टि आज दिनांक 05-11-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1054 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
बहुत भावपूर्ण सुन्दर प्रस्तुति.आभार
जवाब देंहटाएंविरहिन के मन का सुन्दर अंकन !
जवाब देंहटाएंशब्दों का गहरा चित्रांकन..
जवाब देंहटाएंशब्द उकेरे चित्र पर, रविकर के मन भाय ।
जवाब देंहटाएंझूठी शय्या स्वप्न की, वह नीचे गिर जाय ।।
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल..
जवाब देंहटाएं~सादर !
बहुत ही सुन्दर और बेहतरीन गजल..
जवाब देंहटाएंउतना ही बेहतरीन प्रस्तुतीकरण...
:-)
जवाब देंहटाएंहम डूबे मंझन धार में..,
झुलसी काया उलझे रे केश, भरी बसंत-बहार में..,
हाय सुहाय न रुपको धुप, चाँद अगन लगाए है..,
सूखे सूखे पल्लवित पुहुप शीतल-सुखद फुहार में.....,
जवाब देंहटाएंफिर फिर आवें सांझ सकारे , सखी जोहें बाट बहार में..,
देखत पथ दो नैनन हारे, बावरे भए हम प्यार में.....
इंतज़ार का अपना मज़ा है...बहुत खूब...
जवाब देंहटाएंखूबसूरत ग़ज़ल!!
जवाब देंहटाएं्बहुत ही खूबसूरत गज़ल्।
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंरुखा तन भुगते मन साजन उरझी सांस रे..,
कैसे आएँ पास तुम्हारे हम डूबे मंझन धार में..,
ना चिठिया ही ना संदेशा प्रबसे कौन बिदेश रे..,
झुलसी काया उलझे रे केशा शरद भरी कोहार में.....
सुंदर गज़ल विरह वेदना लिये ।
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंफिर फिर आवें सांझ सकारे , सखी जोहें बाट बहार में..,
पंथ निहारे दो नैनन हारे, बावरे भए हम प्यार में..,
सपन-सलोने लोने लोने, सबहीं खोये गए हैं..,
पीर सताए रहा न जाए बिनु तुम्हरे संसार में..,
रुखा तन भुगते मन साजन उरझी सांस रे..,
कैसे आएँ पास तुम्हारे हम डूबे मंझन धार में..,
ना चिठिया ही ना संदेशा प्रबसे कौन परदेश रे..,
झुलसी काया उलझे रे केशा शरद भरी निहार में.....
हाय सुहाय न रुपको धुप, चाँद अगन लगाए है..,
सूखे सूखे से पालउ पुहुप शीतल-सुखद फुहार में.....,