(1) मेघ अभी तक गगन में, खेल रहे हैं खेल। वर्षा के सन्ताप को, लोग रहे हैं झेल।। (2) कितना ही आगे बढ़े, मौसम का विज्ञान। लेकिन बन सकता नही, वो जग का भगवान।। (3) काव्य और साहित्य है, शब्दों से धनवान। शब्दों से होती सदा, मानव की पहचान।। (4) सरेआम बाजार में, अब बिकता ईमान। हत्या करने को चला, शायर की धनवान।। (5) विद्या पढ़ने का जिन्हें, नही मिला अधिकार। कूड़ा-करकट बीनते, वे बालक सुकुमार।। |
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सोमवार, 4 अक्टूबर 2010
"पाँच दोहे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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बहुत अच्छे दोहे ...सीख देते हुए ..
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 5-10 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
http://charchamanch.blogspot.com/
अरे वाह आज तो बहुत ही ज्ञानवर्धक दोहे रचे हैं…………और कोई कोई तो करारी चोट भी कर रहे हैं।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआदरणीय चाचा डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी
जवाब देंहटाएंप्रणाम !
सारे दोहे श्रेष्ठ हैं , मेरे मिजाज़ का यह दोहा बहुत पसंद आया -
सरेआम बाजार में, अब बिकता ईमान।
हत्या करने को चला, शायर की धनवान।।
वाह वाह ! बहुत ख़ूब !
मेरी ग़ज़ल में इसी रंग को देखें -
ज़बह राजेन्द्र को करता ; तुझे मैं मा'फ़ कर देता
मगर तू क़त्ल करने को चला मेरे सुख़नवर को
सादर …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
काव्य और साहित्य पर, आश्रित सकल समाज। विद्या सबको ही मिले प्रण कर लो ये आज!
जवाब देंहटाएंये दोहा आपकी सहायता से लिखा मैने ....
आभार.....
पाँचों सन्देशात्मक।
जवाब देंहटाएंvery good!
जवाब देंहटाएंशब्दों से होती सदा मानव के पहचान । बहुत अच्छी बात कही है शास्त्री जी ।
जवाब देंहटाएंकितना ही आगे बढ़े, मौसम का विज्ञान। लेकिन बन सकता नही, वो जग का भगवान।
जवाब देंहटाएंशिक्षाप्रद ज्ञानवर्धक...
आना सार्थक हो गया.
बहुत सुंदर दोहे |
जवाब देंहटाएंनानाजी इतने अच्छे अच्छे शिक्षाप्रद दोहे बहुत अच्छे लगे आपका बहुत बहुत धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंनन्ही ब्लॉगर
अनुष्का
दोहे बहुत अच्छे और सटीक हें |बधाई
जवाब देंहटाएंआशा
बहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंसारे ही दोहे प्रेरणादायी हैं, बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छे दोहे हैं .. :)
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छे दोहे एक से बढ़कर एक अनुपम प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंकाव्य और साहित्य है, शब्दों से धनवान।
जवाब देंहटाएंशब्दों से होती सदा, मानव की पहचान।
-सभी दोहे बहुत पसंद आये. बधाई.
ये दोहे सिद्ध कर रहे हैं कि कवि की दृष्टि बहुत तीक्ष्ण होती है...बधाई।
जवाब देंहटाएंविद्या पढ़ने का जिन्हें, नही मिला अधिकार।
जवाब देंहटाएंकूड़ा-करकट बीनते, वे बालक सुकुमार।।
मार्मिक और यथार्थ ...
विद्या पढ़ने का जिन्हें, नही मिला अधिकार।
जवाब देंहटाएंकूड़ा-करकट बीनते, वे बालक सुकुमार।
यूं तो सारे ही दोहे बहुत अच्छे हैं पर ये तो कमाल है कितना सही चित्रण है...
very good shashtri darling
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक एवं शिक्षाप्रद दोहे हैं शास्त्री जी ! आपको प्रणाम एवं बधाई !
जवाब देंहटाएंशब्दों से होती मानव की पहचान ...
जवाब देंहटाएंअच्छे शिक्षाप्रद दोहे ...
आभार ...!
काव्य और साहित्य है, शब्दों से धनवान।
जवाब देंहटाएंशब्दों से होती सदा, मानव की पहचान ....
बहुत कमाल के दोहे हैं ... ये सच है की शब्दों से ही पहचान होती है ....