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मायावी अन्तर्जाल के संबन्ध मन न भर पायेंगे। बहुत सुन्दर कविता।
जवाब देंहटाएंkaash ye aham naam ka shabd hi khatam ho jaye to adhikadhik samasaaye to yoonhi khatam ho jaayengee... bahut pyaaree rachna
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता।
जवाब देंहटाएंवाह बेहद उम्दा प्रस्तुति………………गज़ब के भाव भर दिये हैं।
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (25/10/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
बहुत खुबसुरत कविता जी, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंआज चैट पर दो कवितायें पढने को मिली.. एक वंदना जी की और एक आपकी.. दोनों के भाव अलग अलग.. जहाँ वंदना जी आधुनिक नारी के अहं को संतुष्ट कर रही हैं चैट के हथियार से.. आप दुरी मिटने की बात कर रहे हैं.. आपकी अकविता एक अच्छी कविता बन गई है..
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया ताज़गी से परिपूर्ण कविता!
जवाब देंहटाएंआओ मिटाएं
जवाब देंहटाएंआपस की दूरी
तभी तो होगी
मंजिल पूरी।
यथार्थ संदेश देती हुई पंक्तियां।
्शानदार. बढ़िया... आज की पीढ़ी के सन्दर्भ में सटीक.
जवाब देंहटाएंआज तो बहुत कुछ अलग है. आप और आपका अंदाज़ भा गया
जवाब देंहटाएंजितनी प्रशंसा की जाये कम है
जवाब देंहटाएंमगर इस बात बहुत ही ग़म है
कि ये अभिनव कविता आपने लिखी...........
मैंने क्यों नहीं........हा हा हा
vaah .. chat par bhi kavita... bhai aik kavi to har stithi par kavita likh dalta hai.. bahut khoob likha...
जवाब देंहटाएंइन आभासी रिश्तों की दुनिया के विषय में सुंदर सन्देश .....
जवाब देंहटाएंkya baat hai sir ji
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यति |बधाई
जवाब देंहटाएंमुझे नज्म और गजल में अंतर स्पष्ट करवाने के लिए बहुत बहुत आभारी हूं | आपके कमेन्ट के बाद अपने
गुरूजी से भी मैने दौनों में फर्क जाना |एक बार
फिर से बहुत बहुत आभार |
आशा
सत्यम् शिवम् सुंदरम्!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सही कविता,,,
जवाब देंहटाएंमगर आड़े आ रहा है
जवाब देंहटाएंअहम!
badiya abhivyakti!
aham ka lop hi sundar sambandhon ki aadharshila hai!
जवाब देंहटाएंsundar rachna!
regards,
सुन्दर कविता ,सटीक व्यंग्य...वाह !!!!
जवाब देंहटाएंखूब खबर ली आपने...
bahut achchhi prastuti.....
जवाब देंहटाएं