- "एक पुरानी रचना"निर्दोष से प्रसून भी डरे हुए हैं आज।चिड़ियों की कारागार में पड़े हुए हैं बाज।अश्लीलता के गान नौजवान गा रहा,चोली में छिपे अंग की गाथा सुना रहा,भौंडे सुरों के शोर में, सब दब गये हैं साज।चिड़ियोंकीकारागार में पड़े हुए हैं बाज।।
श्वान और विडाल जैसा मेल हो रहा,
नग्नता, निलज्जता का खेल हो रहा,
कृष्ण स्वयं द्रोपदी की लूट रहे लाज।
चिड़ियों की कारागार में पड़े हुए हैं बाज।।
भटकी हुई जवानी है भारत के लाल की,
ऐसी है दुर्दशा मेरे भारत - विशाल की,
आजाद और सुभाष के सपनों पे गिरी गाज।
चिड़ियों की कारागार में पड़े हुए हैं बाज।।
लिखने को बहुत कुछ है अगर लिखने को आयें,
लिख -कर कठोर सत्य किसे आज सुनायें,
दुनिया में सिर्फ मूर्ख के, सिर पे धरा है ताज।
चिड़ियों की कारागार में पड़े हुये हैं बाज।।
रोती पवित्र भूमि, आसमान रो रहा,
लगता है, घोड़े बेच के भगवान सो रहा,
अब तक तो मात्र कोढ़ था, अब हो गयी है खाज।
चिड़ियों की कारागार में पड़े हुए हैं बाज।।
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शनिवार, 30 अक्टूबर 2010
"चिड़ियों की कारागार में पड़े हुए हैं बाज" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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रोती पवित्र भूमि, आसमान रो रहा,
जवाब देंहटाएंलगता है, घोड़े बेच के भगवान सो रहा,
अब तक तो मात्र कोढ़ था, अब हो गयी है खाज।
चिड़ियों के कारागार में पड़े हुए हैं बाज।।
बहुत खूब !!
बहुत खूब शास्त्री जी..आज कल जैसा हो रहा है बखूबी आपने प्रस्तुत किया...आज के परिवेश पर एक बेहतरीन व्यंग कविता..मुझे बहुत पसंद आई..आपका बहुत बहुत आभार..प्रणाम
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी पंक्तियाँ..... पूरी तरह से प्रासंगिक हैं....
जवाब देंहटाएंसमाज की दशा का वर्णन करती अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंआप की यह कविता आज के युग पर सटीक हे जी ,ऎसा ही हो रहा हे,बहुत अच्छी धन्यवाद
जवाब देंहटाएंरोती पवित्र भूमि, आसमान रो रहा,
जवाब देंहटाएंलगता है, घोड़े बेच के भगवान सो रहा,
अब तक तो मात्र कोढ़ था, अब हो गयी है खाज।
चिड़ियों की कारागार में पड़े हुए हैं बाज।।
आज के हालात का सटीक चित्रण्…………्बहुत सुन्दर्।
sarthak kriti..charchamanch par meri rachna shamil karne ke liye bahut bahut aabhar!
जवाब देंहटाएंमयंक जी, बहुत सुंदर। साथ ही चित्र भी जोरदार लगाया है आपने। बधाई।
जवाब देंहटाएं---------
सुनामी: प्रलय का दूसरा नाम।
चमत्कार दिखाऍं, एक लाख का इनाम पाऍं।
सुंदर अति सुंदर.
जवाब देंहटाएंरामराम.
किसी विषय/वस्तु को तो छोड़ दीजिये...जिससे कि टिप्पणी के लिये पुराने शब्दों से काम चल जाये...
जवाब देंहटाएंबाज जब अपनी प्रकृति भूल जायें और असहाय दिखें तो और क्या निष्कर्ष बचता है?
जवाब देंहटाएंआजाद और सुभाष के सपनों पे गिरी गाज।
जवाब देंहटाएंचिड़ियों की कारागार में पड़े हुए हैं बाज।।
Sahi kaha aapne!
रोती पवित्र भूमि, आसमान रो रहा,
जवाब देंहटाएंलगता है, घोड़े बेच के भगवान सो रहा,
अब तक तो मात्र कोढ़ था, अब हो गयी है खाज।
चिड़ियों की कारागार में पड़े हुए हैं बाज।।
आपने सही कहा शास्त्री ... आपने आजकल के माहौल को बखूबी प्रस्तुत किया है... आभार