ईमान ढूँढने निकला हूँ, मैं मक्कारों की झोली में। बलवान ढूँढने निकला हूँ, मैं मुर्दारों की टोली में। ताल ठोंकता काल घूमता, बस्ती और चौराहों पर, कुछ प्राण ढूँढने निकला हूँ, मैं गद्दारों की गोली में। आग लगाई अपने घर में, दीपक और चिरागों ने, सामान ढूँढने निकला हूँ, मैं अंगारों की होली में। निर्धन नहीं रहेगा कोई, खबर छपी अख़बारों में, अनुदान ढूँढने निकला हूँ, मैं सरकारों की बोली में। सरकण्डे से बने झोंपड़े, निशि-दिन लोहा कूट रहे, आराम ढूँढने निकला हूँ, मैं बंजारों की खोली में। यौवन घूम रहा बे-ग़ैरत, हया-शर्म का नाम नहीं, मुस्कान ढूँढने निकला हूँ, मैं बाजारों की चोली में। बोतल-साक़ी और सुरा है, सजी हुई महफिल भी है, सुखधाम ढूँढने निकला हूँ, मैं मधुशाला की डोली में। विकृतरूप हुआ लीला का, राम-लखन हैं व्यभिचारी, भगवान ढूँढने निकला हूँ, मैं कलयुग की रंगोली में। |
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शुक्रवार, 29 अक्टूबर 2010
“…ढूँढने निकला हूँ!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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उत्साह से अनुप्राणित पंक्तियाँ।
जवाब देंहटाएंईमान ढूँढने निकला हूँ, मैं मक्कारों की झोली में।
जवाब देंहटाएंबलवान ढूँढने निकला हूँ, मैं मुर्दारों की टोली में।
बहुत सुन्दर !
ईमान ढूँढने निकला हूँ, मैं मक्कारों की झोली में।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
बहुत सुंदर भाव समेटे है पंक्तियाँ.....
जवाब देंहटाएंमुस्कान ढूँढने निकला हूँ, मैं बाजारों की चोली में।
जवाब देंहटाएंkhoobsurat!
waah waah
जवाब देंहटाएंsaamyik paridrishya par itni umda, maar4ak aur sashakt gazal ke liye dhnyavaad aur badhaai shaastri ji !
jai ho aapki !
हम तो ढूँढ ढूँढ कर थक गए मगर कुछ मिला नहीं,
जवाब देंहटाएंआराम ढूँढ़ते इनदिनों हम खुद की ही हस्ती में ...
कविताई तो आपकी जोरदार रही.. लिखते रहिये ....
तलाश कभी तो पूरी होगी...
जवाब देंहटाएंसुंदर पंक्तियां।
बहुत बढ़िया... बलवान ढ़ूंढने निकला हूं..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव समेटे है पंक्तियाँ....
जवाब देंहटाएंकितने बर्षों से मैं ढ़ूँढ़ा कुछ भी नहीं मिला
जवाब देंहटाएंअरमान ढ़ूँढने निकला हूँ रूपचन्द की बोली में
सादर
श्यामल सुमन
www.manoramsuman.blogspot.com
बहुत खूब !!
जवाब देंहटाएंईमान ढूँढने निकला हूँ, मैं मक्कारों की झोली में....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव लिए है रचना
कहाँ मिल पायेगा यह सब ? अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंकिन शब्दो मे तारीफ़ करूँ……………आज का कटु सत्य बयान कर दिया………………बेहद उम्दा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंनिर्धन नहीं रहेगा कोई, खबर छपी अख़बारों में,
जवाब देंहटाएंअनुदान ढूँढने निकला हूँ, मैं सरकारों की बोली में।
सत्य वचन जी, बहुत सुंदर धन्यवाद
बहुत ही सुन्दर शब्द ....भावमय करती रचना बधाई ।
जवाब देंहटाएंनिर्धन नहीं रहेगा कोई, खबर छपी अख़बारों में,
जवाब देंहटाएंअनुदान ढूँढने निकला हूँ, मैं सरकारों की बोली में।
विकल्प तो यही है
वाह .. बहुत सुन्दर
शास्त्री स्पेशल!
जवाब देंहटाएंतीन बार गाकर टिपियाने आया हूं।
भाव इतने स्पष्ट हैं कि कुछ कहने की ज़रूरत ही नहीं है।
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
राजभाषा हिन्दी पर – मशीन अनुवाद का विस्तार!
मनोज पर -स्वरोदय विज्ञान’
अच्छी प्रस्तुति के लिए बधाई |
जवाब देंहटाएंआशा
वाह वाह शाश्त्रीजी आज तो झंडे से गाड दिये आपने. बहुत जोरदार रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
वाह वाह शाश्त्रीजी आज तो झंडे से गाड दिये आपने. बहुत जोरदार रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम
सरकण्डे से बने झोंपड़े, निशि-दिन लोहा कूट रहे,
जवाब देंहटाएंआराम ढूँढने निकला हूँ, मैं बंजारों की खोली में।
-बहुत जबरदस्त!
हर एक पंक्ति बहुत कडुवा सत्य बयां कर रही है . बहुत प्रभावशाली रचना .
जवाब देंहटाएंआभार