हम अनोखा राग गाने में लगे हैं। साज हम नूतन बजाने में लगे हैं।। भूल कर अब तान वीणा की मधुर, मान माता का घटाने में लगे हैं। मीर-ग़ालिब के तराने भूल कर, ग़ज़ल का गौरव मिटाने में लगे हैं। दब गया संगीत है अब शोर में, कर्णभेदी सुर सजाने में लगे हैं। छन्द गायब, लुप्त हैं शब्दावली, पश्चिमी धुन को सुनाने में लगे हैं। गीत की सारी मधुरता लुट गई, हम नए नगमें बनाने में लगे हैं। हम धरा के पेड़-पौधे काट कर, फसल काँटों की उगाने में लगे हैं। छोड़ कर रसखान वाले अन्न को, आज हम कंकड़ पचाने में लगे हैं। (चित्र गूगल छवि से साभार) |
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बुधवार, 20 अक्टूबर 2010
“कंकड़ पचाने में लगे हैं।” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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बहुत ही सार्थक और सशक्त प्रस्तुति .....आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत मजबूत हाजमा है हमारा.
जवाब देंहटाएंहम धरा के पेड़-पौधे काट कर,
जवाब देंहटाएंफसल काँटों की उगाने में लगे हैं।
आज चहुं ओर यही दिख रहा है।
आपने तो हर विसंगति पर उंगली रखी है .. अच्छी लगी यह रचना , बहुत सार्थक और सन्देश युक्त ।
जवाब देंहटाएंहम धरा के पेड़-पौधे काट कर,
जवाब देंहटाएंफसल काँटों की उगाने में लगे हैं।
और जब चुभ जाती है
तो क्यो तिलमिलाने लगे हैं.
kankad pachtay to hai nahi...pathari aur kar jaate hain....
जवाब देंहटाएंhehehe...bahut hee umdaa rachna har baar ki tarah is baar bhi shastri ji
""हम धरा के पेड़-पौधे काट कर,
जवाब देंहटाएंफसल काँटों की उगाने में लगे हैं।
छोड़ कर रसखान वाले अन्न को,
आज हम कंकड़ पचाने में लगे हैं।""
आज के समय में रचनात्मकता की परिभाषा बदल गई है.. इसे बहुत सार्थक और प्रभावशाली ढंग से अभिव्यक्त किया है आपने.. सुंदर !
हम धरा के पेड़-पौधे काट कर,
जवाब देंहटाएंफसल काँटों की उगाने में लगे हैं।
छोड़ कर रसखान वाले अन्न को,
आज हम कंकड़ पचाने में लगे हैं।
बहुत खूब !
दब गया संगीत है अब शोर में,
जवाब देंहटाएंकर्णभेदी सुर सजाने में लगे हैं।
waah!
satya ka digdarshan karati sundar rachna!
kankad pachane wale is daur par sateek rachna hai!
बिलकुल सही कहा आपने।धार्मिक गीत भी फिल्मी धुनो पर बनने लगी हैं। सार्थक पोस्ट। शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंदब गया संगीत है अब शोर में,
जवाब देंहटाएंकर्णभेदी सुर सजाने में लगे हैं
सटीक और सार्थक ..
्यही तो आज की त्रासदी है।
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (22/10/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
good saarthak bhaav se bhai rachna.
जवाब देंहटाएंधारा के पेड पौधे मिटा कर कांटे उगने लगे हैं ...
जवाब देंहटाएंसही कहा ...!
aaj ki yahi trasdi hai...achchhi prastuti.
जवाब देंहटाएंहम धरा के पेड़-पौधे काट कर,
जवाब देंहटाएंफसल काँटों की उगाने में लगे हैं।
Sabse bada dukh to yahee hai!
Behad sundar rachana!
sundar likha hai... aur saty
जवाब देंहटाएंचंद गायब -----हम नए नगमें बनाने में लगे हें
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति |बधाई
आशा
बहुत सुन्दर रचना .........पंक्ति पंक्ति अति सुन्दर
जवाब देंहटाएंअपने आस पास की विसंगतियों और विद्रूपताओं की भावपूर्ण और सटीक अभिव्यक्ति आभार.
जवाब देंहटाएंसादर
डोरोथी.