सपने देखे मैंने मन में
अपने छोटे से जीवन
में
इठलाना-बलखाना
सीखा
हँसना और हँसाना
सीखा
सखियों के संग
झूला-झूला
मैंने इस प्यारे
मधुबन में
भाँति-भाँति के
सुमन खिले थे
आपस में सब
हिले-मिले थे
प्यार-दुलार दिया
था सबने
बचपन बीता इस गुलशन
में
एक समय ऐसा भी आया
जब मेरा यौवन
गदराया
विदा किया बाबुल
ने मुझको
भेज दिया अनजाने
वन में
अब था मेरा नया
बसेरा
नयी शाम थी नया सवेरा
सारे नये-नये अनुभव
थे
अनजाने से इस आँगन
में
कुछ दिन बाद चमन
फिर महका
कलियाँ चहकी-यौवन चहका
भारी मन से भेज
दिया था
बेटी को नूतन उपवन
में
नारी की तो कथा
यही है
आदि काल से प्रथा रही
है
पली कहीं तो, फली कहीं है
दुनिया के उन्मुक्त गगन में
|
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शुक्रवार, 17 मई 2013
"अपने छोटे से जीवन में" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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अच्छा है.... लय, ताल बहुत बढ़िया बन पड़े हैं, बधाई
जवाब देंहटाएंबढिया है
जवाब देंहटाएंसुंदर
नारी जीवन पूरा विटप प्रस्तुत किया |
जवाब देंहटाएं'झरें नीम की पत्तियाँ' में सर्ग का नया उपसर्ग 'दहेज़ की समस्या पर है !
सुन्दर रचना !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना सर ,हर स्त्री की कहानी सी ....
जवाब देंहटाएंधन्यवाद....
छोटा जीवन, सुखमय बीती जाती यादें।
जवाब देंहटाएंनारी जीवन की कहानी शब्दों में ढाल दी।
जवाब देंहटाएंनारी जीवन तेरी यही कहानी ........सुन्दर रचना मयंक जी
जवाब देंहटाएंनारी जीवन को चित्रित् करता कविता...... सादर.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति ..आभार . ये गाँधी के सपनों का भारत नहीं .
जवाब देंहटाएंनारी जीवन की बहुत ही भावात्मक प्रस्तुति,आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंबढ़िया
जवाब देंहटाएंबढ़िया
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर... नारी जीवन का चित्रण...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएं