वो मजे में चूर हैं, बस इसलिए मग़रूर हैं
हम मजे से दूर हैं, बस इसलिए मजदूर हैं
आज भी बच्चे हमारे, बीनते कचरा यहाँ,
किन्तु उनके लाल, मस्ती के लिए मशहूर हैं
कोठियों को बनाकर, हम सो रहे फुटपाथ पर
उन निठल्लों के लिए तो, कोठियाँ भरपूर हैं
हम पसीने को बहाकर, सींचते जाते चमन
जो गुलों को नोचते, वो हो गये पुरनूर हैं
नक्कारखाने में फँसी, तूती बिचारी क्या करे
अंजुमन में लोग तो अपने नशे में चूर हैं
लोकशाही का यहाँ, कितना घिनौना “रूप” है
श्रमिकों के ख्वाब सारे आज चकनाचूर हैं
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बुधवार, 1 मई 2013
"वो मजे से दूर हैं-मजदूर दिवस पर..." (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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विडंबना ही है स्वयं मुश्किलें झेलते हैं और दूसरों जीवन सरल बनाते हैं
जवाब देंहटाएंमजदूर दिवस पर सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंएक बेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंमजदूर दिवस पर बहुत सुंदर प्रस्तुति ,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST: मधुशाला,
उनके लिये धरती और आकाश सुखदायी हों।
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना
जवाब देंहटाएंबड़ा सवाल ये कि कब बदलेगी मजदूरों के हालत
उदारीकृत अर्थ व्यवस्था पर जबरजस्त तंज आज की हकीकत है अब तो श्रम दिवस /मजदूर दिवस भी उदारीकरण के नीचे दम तोड़ चुका है .लेफ्टियों का कहीं कोई ज़िक्र नहीं हैं .तिहाड़ खोर चर्चा में रहते हैं .तीर्थों का तीर्थ बना हुआ है आज तिहाड़ और हमारे सुयोग्य सांसद यहाँ शोभायमान हैं .सदन ही खतरा बन गए हैं अब तो .
जवाब देंहटाएंजय जवान, जय किसान
जवाब देंहटाएंहिन्दुस्तान मे वर्गभेद नही है समुच्चय है
अभी तक मजदूरों के हालत में कोई सुधार नहीं.... बहुत सुंदर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंमजदुर दिवस पर बहुत ही सार्थक प्रस्तुति,आभार.
जवाब देंहटाएंचलो साल में एक दिन
याद करके अपने को चमकाते है
मजदूरों को दधीच बना कर
अपना इन्द्रलोक बचाते है
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआजकल तो मजदूर भी कुछ मगरूर लगता है |
जवाब देंहटाएंमेहनत मशक्कत ईमान से कुछ दूर लगता है ||
आम आदमी की सेवा से बच कर वह अब तो-
पूँजी पति या 'मंरेगा' से चिपका भरपूर लगता है ||
मजदूरों के जीवन को सच्ची तौर पर बयां करती रचना
मजदूर दिवस पर सार्थक
उत्कृष्ट प्रस्तुति
दुनियां के मजदूरो एक हो
मजदूरों को लाल सलाम
विचार कीं अपेक्षा
jyoti-khare.blogspot.in
कहाँ खड़ा है आज का मजदूर------?
आपकी यह प्रस्तुति कल के चर्चा मंच पर है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
आज के रोज भी शो वही चुरा ले जाते हैं जो अपने हितों को साधते हैं. बहुत वितृष्णा होती है देखकर.
जवाब देंहटाएंसेहतनामा को बिठाने के लिए चर्चा मंच का शुक्रिया .बेहद की मेहनत से तैयार पोस्ट .सेतु चयन सार्थक विविध रंगी .
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रासंगिक पोस्ट श्रम दिवस पर .
जवाब देंहटाएंमजदूर दिवस को समर्पित अत्यंत प्रभावशाली रचना.
जवाब देंहटाएंलोकशाही का यहाँ, कितना घिनौना “रूप” है
श्रमिकों के ख्वाब सारे आज चकनाचूर हैं
बधाई.
sundar rachna
जवाब देंहटाएंमजदुर दिवस पर-बढ़िया प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंlateast post मैं कौन हूँ ?
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