लोकतन्त्र में हो रहा, गन्दा कारोबार।
शोक
सभा में कर रहे, वोटों का व्यापार।।
कराने
झगड़े-दंगे।
आ
गये नेता नंगे।।
जीते-जी
ना कर सके, सहायता का काम।
मर
जाने के बाद में, देते हैं ईनाम।।
पहन
कर चिट्टी वर्दी।
जताते
हैं हमदर्दी।।
जोड़-तोड़
के खेल से, चला रहे सरकार।
महँगाई
के सामने, बिल्कुल हैं लाचार।।
बढ़ाकर
रिश्वतखोरी।
भर
रहे खूब तिजोरी।।
पाक-चीन
ललकारते, रहे धरा को छीन।
फिर
भी नेता जा रहे, दावत खाने चीन।।
बने
माता के घाती।
शर्म
नहीं इनको आती।।
|
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शनिवार, 4 मई 2013
"आ गये नेता नंगे" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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पाक-चीन ललकारते, रहे धरा को छीन।
जवाब देंहटाएंफिर भी नेता जा रहे, दावत खाने चीन।।
बने माता के घाती।
शर्म नहीं इनको आती।।
बहुत उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति,,,
RECENT POST: दीदार होता है,
ऐसी ही तो है ..
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक अभिव्यक्ति ..!!
सबको सद्बुद्धि मिले..
जवाब देंहटाएंबिल्कुल ठीक कहा आपने.
जवाब देंहटाएंएक दम सही बात :)
जवाब देंहटाएंबने माता के घाती,शर्म इनको नहीं आती !
जवाब देंहटाएंसटीक रचना !!
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत कडा प्रहार आज के नेता पर |सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंआशा
आज के हमारे ऐसे ही नेता है,बहुत ही सार्थक प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार्थक प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंसबको सन्मति दे भगवान् ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना....
जवाब देंहटाएंbahut sundar ...prabhavshali dohe !
जवाब देंहटाएंNAGNTA KI PARAKASTHA ,SUNDAR KRITI
जवाब देंहटाएंबहुत खूब गुरु जी बिलकुल सही कहा
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक बात कहीं गुरूदेव आपने! बहुत सुन्दर! आपको नमन!
जवाब देंहटाएंभाई जी, बड़ी खुशी है कि 'दोहागीत' को नया आयाम तथा नए 'छन्द द्वय समुच्चय' के साथ
जवाब देंहटाएंअपनाया गया है |बड़ी साध थी कि इस विधा को आगे के लिये मार्ग मिले सो नितर आप ने पहलकर डी है |