ज़िन्दगी के रास्तों पे कदम तो बढ़ाइए।
इस सफर को नापने को हमसफर बनाइए।।
राह है कठिन मगर लक्ष्य है पुकारता,
रौशनी से आफताब मंजिलें निखारता,
हाथ थामकर डगर में साथ-साथ जाइए।
ज्वार का बुखार आज सिंधु को सता रहा,
प्रबल वेग के प्रवाह को हमें बता रहा,
कोप से कभी किसी को इतना मत डराइए।
काट लो हँसी-खुशी से, कुछ पलों का साथ है,
चार दिन की चाँदनी है, फिर अँधेरी रात है,
इन लम्हों को रार में, व्यर्थ मत गँवाइए।
पुंज है सुवास का, अब समय विकास का,
वाटिका में खिल रहा, सुमन हमारी आस का,
सुख का राग, आज साथ-साथ गुनगुनाइए।
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शनिवार, 26 अप्रैल 2014
"गीत-हमसफर बनाइए" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत बढिया..
जवाब देंहटाएं-सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंआपने लिखा....
मैंने भी पढ़ा...
हमारा प्रयास हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना...
दिनांक 28/04/ 2014 की
नयी पुरानी हलचल [हिंदी ब्लौग का एकमंच] पर कुछ पंखतियों के साथ लिंक की जा रही है...
आप भी आना...औरों को बतलाना...हलचल में और भी बहुत कुछ है...
हलचल में सभी का स्वागत है...
बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंराह है कठिन मगर लक्ष्य है पुकारता,
जवाब देंहटाएंरौशनी से आफताब मंजिलें निखारता,
हाथ थामकर डगर में साथ-साथ जाइए।
बहुत सुंदर !
बहुत सुंदर .......
जवाब देंहटाएं