भूल गये
अपने अतीत को, ये नवयुग के मतवाले।
पश्चिम की
सभ्यता बताते, क्या जीजा अरु क्या साले?
मम्मी जी
बेटी विदेश की,
रीत यहाँ
की क्या जाने?
महलों में
जो रही सदा.
वो निर्धनता
क्या पहचाने?
अंग
विदेशी-ढंग विदेशी, जनता पर डोरे डाले।
पश्चिम की
सभ्यता बताते, क्या जीजा अरु क्या साले?
वंशवाद की
बेल सींचती,
प्रजातन्त्र
की क्यारी में।
डोर हाथ
में अपने रखती,
सारथी बनी
सवारी में।
असरदार-सरदार
सभी तो, अपने दरबे में पाले।
पश्चिम की
सभ्यता बताते, क्या जीजा अरु क्या साले?
अवतारों
की वसुन्धरा में
राम-कृष्ण
को भुला दिया।
भारत के पहरेदारों
को
अफीम देकर
सुला दिया।
हरे, सफेद
बैंगनी बैंगन, अपने ही रँग में ढाले।
पश्चिम की
सभ्यता बताते, क्या जीजा अरु क्या साले?
अपने घर
में लेकर आये,
परदेशों
से व्यापारी।
लगता फिर
कंगाल बनेगी,
सोनचिरय्या
बेचारी।
आजादी के
सीने में ये, घोप रहे पैने भाले।
पश्चिम की
सभ्यता बताते, क्या जीजा अरु क्या साले?
लाल-बाल
और पाल. भगत सिंह,
देख दुखी
होते होंगे।
बिस्मिल
और आजाद स्वर्ग में,
अपना सिर
धुनते होंगे।
गांधी जी को
भुना रहे हैं, ये आफत के परकाले।
पश्चिम की
सभ्यता बताते, क्या जीजा अरु क्या साले?
|
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बुधवार, 23 अप्रैल 2014
"गीत-आफत के परकाले" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सटीक अभिव्यक्ति...लाज़वाब..
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 24-04-2014 को चर्चा मंच पर दिया गया है
जवाब देंहटाएंआभार
इस बेटी ने अपने पिता के बम -विस्फोट में टुकड़े -टुकड़े हुए देंखें हैं। आप इस बेटी के विषय में ऐसा कैसे लिख सकते हैं -अंग विदेशी-ढंग विदेशी, जनता पर डोरे डाले।
जवाब देंहटाएंसशक्त व्यंग्य उन लोगों पर जिनका लिखा हुआ भाषण हवा में उड़ जाए तो कागज़ से पहले धड़ाम से गिर पढ़ें मंच पर। आफत के परकाले ,काले धन के रखवाले क्या जीजा क्या साले।
हटाएंज़रूरी नहीं हैं सब बूटलीकर हों। वैसे तलुवे चाटना भी एक कला है नियति नहीं।
रीत यहाँ की क्या जाने?
जवाब देंहटाएंमहलों में जो रही सदा.
वो निर्धनता क्या पहचाने?
अंग विदेशी-ढंग विदेशी, जनता पर डोरे डाले।
पश्चिम की सभ्यता बताते, क्या जीजा अरु क्या साले?
वंशवाद की बेल सींचती,
प्रजातन्त्र की क्यारी में।
डोर हाथ में अपने रखती,
सारथी बनी सवारी में।
असरदार-सरदार सभी तो, अपने दरबे में पाले।
पश्चिम की सभ्यता बताते, क्या जीजा अरु क्या साले?
सशक्त व्यंग्य उन लोगों पर जिनका लिखा हुआ भाषण हवा में उड़ जाए तो कागज़ से पहले धड़ाम से गिर पढ़ें मंच पर। आफत के परकाले ,काले धन के रखवाले क्या जीजा क्या साले।
बेहतरीन कांग्रेस पर अब तक की सबसे अच्छी कविता
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