हौसला रख कर कदम आगे धरो।
फासले इतने तो मत पैदा करो।।
चाँद तारों से भरी इस रात में,
मत अमावस से भरी बातें करो।
जिन्दगी है बस हकीकत पर टिकी,
मत इसे जज्बात में रौंदा करो।
उलझनों का नाम ही है जिन्दगी,
हारकर, थककर न यूँ बैठा करो।
छोड़ दो शिकवों-गिलों की डगर को,
मुल्क पर जानो-जिगर शैदा करो।
ज़िन्दगी है चार दिन की चाँदनी,
“रूप” पर इतना न तुम ऐंठा करो।
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रविवार, 6 अप्रैल 2014
"मुल्क पर जानो-जिगर शैदा करो" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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उत्साह बढ़ाती कविता।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ग़ज़ल...
जवाब देंहटाएंvery nice.
जवाब देंहटाएंउलझनों का नाम ही है जिन्दगी,
जवाब देंहटाएंहारकर, थककर न यूँ बैठा करो। in do waakyon ne puri jindgi ki kahani bayaan kar di ......bahut sundar ....
छोड़ दो शिकवों-गिलों की डगर को,
जवाब देंहटाएंमुल्क पर जानो-जिगर शैदा करो।
बहुत बढ़िया बात कही है