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रविवार, 12 अप्रैल 2009
"श्री विष्णु प्रभाकर जी को भाव-भीनी श्रद्धांजलि" (डा0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
हिन्दी के शीर्षस्थ साहित्यकार विष्णु प्रभाकर जी हिन्दी साहित्य को समृद्धशाली बना कर इस लौकिक संसार से हमेशा-हमेशा के लिए विदा हो गये हैं। परन्तु हिन्दी साहित्य की अमूल्य धरोहर के रूप में लाखों-करोड़ो हिन्दी साहित्य प्रेमियों के दिलों में अपनी कभी न मिटने वाली यादें छोड़ गये हैं।
निश्छल स्वभाव वाले, साहित्य के इस साधक को कौन भुला पायेगा। वे साहित्य को पूर्णतः समर्पित कालजयी साहित्यकार थे।
उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के एक छोटे कस्बे मीरापुर में 20 जुलाई 1912 को जन्मे इस साहित्यकार ने जीवन के बहुत उतार-चढ़ाव झेले और साहित्य की साधना करते चले गये। बहुमुखी प्रतिभा के धनी श्री प्रभाकर जी की साहित्यिक प्रतिभा भी बहुमुखी थी।
उन्होंने हिन्दी -साहित्य की विधाओं जैसे- उपन्यास, कहानी-लेखन, एकांकी-लेखन, नाटक, जीवनी, बालोपयोगी साहित्य आदि सभी में अपनी सशक्त लेखनी को चलाया। 1980 के दशक में मैंने रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय के एम.ए. के पाठ्यक्रम में उनके नाटक ‘‘युगे-युगे क्रांन्ति’’ के द्वारा उनके गहन चिन्तन-मनन का परिचय पाया था। वह स्मृति आज भी मेरे मन पर उनकी विशेष छाप बनाये हुए है।
मैं इस महान साहित्यकार को प्रणाम करता हूँ।
अपने दिल की गहराइयों से उन्हें भाव-भीनी श्रद्धांजलि समर्पित करता हूँ।
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shri vishnu prabhakar ji ke bare mein itni upyogi jankari ke liye shukriya.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर.......शास्त्री जी को मेरी भी श्रद्धांजलि...
जवाब देंहटाएंUchchaaran par prakaashit lagbhag har post par das ke aaspaas comment to hote hee hain. Is post ke saath maatra do comment dekhkar hairaanee ke saath-saath dukh bhee huaa.
जवाब देंहटाएंAapne sachchee shraddhaanjali dekar puneet kaarya kiyaa hai. Main ismen shaamil hoon.
(Mobile se)
महान साहित्यकार!
जवाब देंहटाएंविष्णु प्रभाकर जी को श्रद्धांजलि।
इतने महान साहित्यकार का विदा हो जाना, हिन्दी साहित्य की अपूरणीय क्षति है। श्रद्धांजलि।
जवाब देंहटाएंमित्रवर मयंक जी!
जवाब देंहटाएंविष्णु प्रभाकर जी को आपके साथ एम ए में साथ-साथ पढ़ा है।
श्रद्धांजलि...
श्रद्धांजलि...
जवाब देंहटाएंईश्वर उनकी आत्मा को सदगति प्रदान करें।
महान साहित्य के सर्जनकर्ता को
जवाब देंहटाएंभावभीनी-श्रद्धांजलि।
विष्णु प्रभाकर जी
जवाब देंहटाएंको भावभीनी-श्रद्धांजलि।
वन्दना अवस्थी दूबे जी!
जवाब देंहटाएंआपने अपनी टिप्पणी में भावनाओं में डूब कर विष्णु प्रभाकर जी को श्रद्धांजलि देने की जगह मुझे ही श्रद्धांजलि से नवाज दिया। आभारी हूँ। यदि बुरा न मानें तो पुनः विष्णु प्रभाकर जी को श्रद्धा-समुन चढ़ा दें । वैसे मुझे भी तुम्हारे श्रद्धा-समुन स्वीकार हैं।
Vaah, Mayank jee,
जवाब देंहटाएंVandana jee ke shraddhaa-suman sweekaar karke aapne theek hee kiyaa hai. Jeetejee aapko shraddhaanjali arpit karke unhonne aapkee umra barhaane kaa kaam kar diyaa hai. Sachmuch aapko unkaa aabhaaree honaa hee chaahiye.
(Mobile se)
मैं साहित्य का पारखी नहीं, न ही विष्णु जी को मैंने कभी पढ़ा। लेकिन कल पता चला कि मरणोपरांत उनका अंतिम संस्कार नहीं किया जायेगा, क्योंकि उन्होंने अपना शरीर अखिल भारतीय आयु्र्विज्ञान संस्थान को दान कर दिया है। वहाँ चिकित्सा-शास्त्र के छात्र उनके शरीर पर अध्ययन करके बेहतर डॉक्टर बन सकेंगे। शिक्षा के लिये ऐसा महादान केवल कोई महापुरुष ही कर सकता है। ऐसी उच्च और परोपकारी सोच रखने वाले व्यक्ति की धरती से विदायी वाकई दुखदायी है। विष्णु प्रभाकर अमर रहें।
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