बातों का सारा लहजा, जाना-पहचाना लगता है।
क्या वो मुझसे बातें, करने को आकुल होते होंगे?
जैसे मैं आतुर हूँ, क्या वो भी व्याकुल होते होंगे?
क्या उनको अब भी मन मेरा, अनजाना लगता है।
उनकी याद बहुत तड़पाती, बन कर एक पहेली सी।
वो लगती बचपन की मेरी, मुझको एक सहेली सी।
उनकी वाणी मुझको, मधुरिम गाना सा लगता है।
जिस दिन बात नही होती वो सपनों में आ जाते हैं।
बन कर सावन की बूँदे, वो नयनों में छा जाते हैं।
उनकी शीतल छाया में ही, ठौर ठिकाना लगता है।
वो स्वर्णिम पल होते हैं, जब वो बाते करते हैं।
मिलने के जाने कितने ही, झूठे वादे करते हैं।
शब्द-जाल उनका अब, मुझको तान-बाना लगता है।
कल्पनाओं के सागर में, क्या बुना मुझे कुछ याद नही।
बेदिल वालों से दिल वालो, करना कुछ फरियाद नही।
धुँधली यादों का मन पर, इक अक्स पुराना लगता है।
रह रह कर उनका यादों में आ जाना अच्छा लगता है,
जवाब देंहटाएंकविता में एक कहानी का कह जाना अच्छा लगता है.
बहुत सुन्दर गीत लिखा है..बड़ी सुन्दर लय बंधी है.
बहुत ही सुंदर लयबद्ध गीत है. गुनगुनाने ्हुये पढने मे मजा आया. बहुत शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
शास्त्री जी प्रणाम,
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर मनोभिव्यक्ति!
सुन्दर गीत ..अच्छा लगा इसको गुनगुनाते हुए पढना
जवाब देंहटाएंbade bhai
जवाब देंहटाएंmuhabbat ki yaaden mubarak hon .
hum to kahte hain ab bhi kuchh nahin hua. kisi ke ho jaao ya kisi ko apna bana lo. sachmuch jeevan mahak uthega.chupke chupke.
bahut sundar.
जवाब देंहटाएंजिस दिन बात नही होती वो सपनों में आ जाते हैं।
जवाब देंहटाएंबन कर सावन की बूँदे, वो नयनों में छा जाते हैं।
उनकी शीतल छाया में ही, ठौर ठिकाना लगता है।
........यह पंक्तियाँ बहुत ही अच्छी लगीं। सुंदर रचना।
kya khun..............nishabd hun.
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