क्या ब्लागर साहित्यकार नही होता है?
क्या साहित्यकार का सामान्य-ज्ञान शून्य होना चाहिए?
बीस अप्रैल को मैंने एक पोस्ट लगाई थी। जिसमें जरा बताइए तो शीर्षक से एक माथापच्ची थी।
चित्र उत्तराखण्ड की प्रसिद्ध दरगाह पीरान कलियर शरीफ का था।
साहित्य शारदा मंच, खटीमा की कार्यसमिति ने इसका उत्तर सबसे पहले देने वाले तीन विजेताओं को साहित्य शारदा मंच, के सर्वोच्च सम्मान ‘‘साहित्य-श्री’’ से पुरस्कृत करने का निर्णय किया।
एक बेनामी ने टिप्पणीकार ने इस पर अपना कमेंट निम्न रूप में किया-
बेनामी ने कहा…
श्रीमान जी, साहित्य श्री साम्मान का स्तर इतना मत गिराईये कि
एक पहेली के जवाब मे बंटने लग जाये। आगे आपकी मर्जी।
April 24, 2009 12:31 PM
उसका उत्तर मैंने निम्नवत् दिया-
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक ने कहा…
बेनामी जी।
इतना भी बता दें कि क्या ये तीन लोग आपकी नजर में साहित्यकार नहीं हैं।
भइया!
मेरी लिस्ट में तो ये साहित्यकार ही हैं। सोच-समझकर ही यह निर्णय किया गया है।
फिर रचना जी के निम्न दो कमेंट आये-
रचना ने कहा…
"इतना भी बता दें कि क्या ये तीन लोग आपकी नजर में साहित्यकार नहीं हैं।
"jee haan yae teen log saahitykaar nahin haen blogger haen
blog aur saahity do alag alag vidha haen ।
April 24, 2009 1:47
रचना ने कहा…
anaam kaemnt mera nahin haen yae bhi kehddena jaruri haen
April 24, 2009 1:53 PM
जिनका उत्तर मैंने रचना जी को इस रूप में दिया।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक ने कहा…
वाह वाह रचना जी!
आपकी टिप्पणी पर तो आपको साहित्य-श्री के अतिरिक्त जो भी सम्मान हो वह दे देना चाहिए।
मैं इस व्यर्थ की चर्चा को आगे बढ़ाना नही चाहता था।
परन्तु आपने प्रेरित किया है या यों कहिए कि स्वाभिमान को ललकारा है,
तो मुझे अलग से इस पर एक पोस्ट लगानी पड़ेगी।
हर्ज ही क्या है ? एक खुली बहस तो हो ही जायेगी।
अरे, आप तो Comment की वर्तनी भी अशुद्ध लिखती हैं।
फिर आप ब्लागर को साहित्यकार कब स्वीकार करने वाली हैं
एक बार फिर बता दीजिए कि हिन्दी के धुरन्धर लिखाड़ क्या साहित्यकार नही होते हैं?
आशीष खण्डेलवाल एक कम्प्यूटरविद् हैं।
क्या आप कम्प्यूटर विज्ञान को साहित्य नही मानती है?
वन्दना अवस्थी दूबे जो इतना अच्छा लिख रही हैं।
आपकी दृष्टि में वो भी साहित्यकार नही हैं।
सबसे पुराने हिन्दी चिट्ठाकारों के रूप में आदरणीय समीरलाल को भी
आप साहित्यकार क्यों स्वीकार करेंगी?
जिनका साहित्य ब्लॉग-जगत से निकलकर अब पुस्तकों के रूप में आ चुका है।
इन सभी को आप साहित्यकार भले ही न मानें।
मैं तो इन्हें साहित्यकार मान कर इनका सम्मान करना अपना धर्म समझता हूँ।
April 24, 2009 3:42 PM
अब मैं ब्लाग जगत के सभी चिट्ठाकारों से निवेदन करना चाहता हूँ -
कि निम्न दो बिन्दुओं पर अपने-अपने विचार मुझे दिशा-निर्देश के रूप में देने की कृपा करें।
क्या ब्लागर साहित्यकार नही होता है?
क्या साहित्यकार का सामान्य-ज्ञान शून्य होना चाहिए?
yeh to apni apni manyatayein hain........log jo chahe soch sakte hain aur man sakte hain .........kaun sahityakar hai ya nhi.
जवाब देंहटाएंmujhe nhi pata sahityakar ki kya paribhasha hoti hai.main to itna janti hun jab bhi jisne bhi jo bhi likha aur duniya ko pasand aaya to wo hi sahitya ban gaya.beshak alochak har kisi ka hota hai aur jab tak alochna na ho koi ooncha sthan prapt bhi nhi kar pata.
kya sahitykar ka samanya gyan shoonya hona chahiye.................yeh to prashn uthna hi nhi chahiye kyunki agar wo sahityakar hai to use samanya gyan hoga hi aur hona bhi chahiye.
har insaan mein alag alag vidhayein hoti hain , koi bhi har vidha mein paripakv nhi hota.
hamein kisi ko bhi kisi ek taraju mein nhi tolna chahiye.har insaan ki apni apni khoobiyan hoti hain.unhein janna chahiye aur samajhna chahiye.
main to itna hi kahungi.......har insan mein kahin na kahin ek sahityakar bhi chupa hota hai , bas ujagar hone ki der hoti hai.
साहित्य के बारे में अधिक तो नही जानती
जवाब देंहटाएंपर यदि किसी की पिक्तयाँ हमारे अंतर को छू जाये
तो वो पुस्तक में हो यह ब्लॉग पर जयादा अंतर नही होता
साहित्य विचारो की अभिव्यक्ति ही तो है
फिर चहइ वो कहि भी हो और यदि किसी के विचार हम हासा और रुला सके
कुछ सीखा सके , सोचने पर मजबूर कर दे तो वही साहित्य है
gargi
www.feelings44ever.blogspot.com
कुछ एक बहुत अच्छा काम कर रहे हैं और आपकी बात सही है।
जवाब देंहटाएंblogger bhi bahut achhe sahityakar hain abhi blogging ka daur shuru huye adhik samay nahi hua abhi blogging ke bare me bahut se logon ko na to jankari hai na hi unke pas net work suvidha hai dheere dheere dekhiyega ki sabhi sahityakar blogging me aa jayenge ibhi tak adhiktar log time pass ke liye hi blog ka istemal karte hain lekin ue abhivyakti ka hi madhayam nahi rahega bakki is se bhi upar sahitua ka sansar ban jayega mai samajhti hoon ki nayee pratibha ko isme adhik utsah milta hai aur sahitya ke kshetar me aur bhi adhik log aayenge aapka paryas bahut achha hai kisi navakshar ko protsahan dena bahut achha hai ap lagay rahen shubhkamnayen
जवाब देंहटाएंमैं सिर्फ़ इतना कहूंगा कि साहित्यकार कोई तोप नहीं होता. दूसरी बात यह कि ब्लॉगर के लिए यह जरूरी नहीं कि वह साहित्यकार हो और न साहित्यकार के लिए ये जरूरी है कि वो ब्लॉगर हो. तीसरी बात यह कि अगर पहेलियां बुझाना कोई घटिया दर्जे का काम है और साहित्य बेचारे की श्री में कोई कमी-वमी आती है तो भाई अपन क्या कर सकते हैं? अपन तो निहायत अल्प्ज्ञ हैं. सिर्फ़ एक ही बात जानते हैं और वह कि ऐसी ग़लती अमीर खुसरो भी कर चुके हैं. क्या बताएं, ग़लती से हम भी उन्हें अब तक खड़ी बोली के शुरुआती कवियों में शुमार करते आ रहे थे.हम आपसे राय चाहते हैं. बताइए, खुसरो साहब को साहित्यकार मानें या छोड़ दें. अब अगर आप कहें तो कल ही उन्हें साहित्य के खलियान से खेद आते हैं.
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी, सबसे पहले तो इस सम्मान के लिए आपका आभार..
जवाब देंहटाएंदो रचनाओं की ओर ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं-
इक
लाठी
वो
काठी
वाली....
सरदी, गरमी और बरसातें
सुख और दुख की
वे सौगातें....
हरदम ही
वो
साथ रही थी...
आगे पढ़ें..
अब एक नज़र इस पर डालें..
ज़िन्दगी के कुछ ऐसे पल,
जिन्हें हम भोगना चाहते हैं,
लेकिन वे हमसे दूर भागते हैं;
शायद हमसे बचना चाहते हैं ,
हम पकडना चाहते हैं उन्हें,
और वे समा हो जाते हैं,
काल के निर्मम गाल में;
और हम परकटे परिंदे की तरह
देखते रह जाते हैं,
रह जाता है, अंतहीन इंतज़ार-
कि हम से रूठे पल कभी तो वापस आयेंगे. इनमें से एक समीर लाल जी रचित है और दूसरी वन्दना अवस्थी दुबे जी रचित। साहित्यकार की परिभाषा तो नहीं जानता, लेकिन यह ज़रूर कह सकता हूं कि मुझे इन दोनों रचनाओं ने बहुत प्रभावित किया है। (यह बात अलग है कि मुझमें किसी तरह की साहित्यशीलता नहीं है, फिर भी मुझे इस श्रेणी में रखा गया। शायद कुछ साथियों के ऐतराज की वजह भी यही है।) ऊपर दी गई मिसालों से सभी सवालों के जवाब स्वतः ही मिल जाते हैं.. आभार
परिभाषित करना और किसी भी चीज को देखने का अपना अपना नजरिया होता है... कौन कहता है के ब्लोगर साहित्यकार नहीं होता या साहित्यकार ब्लोगर नहीं हो सकता... मेरे ख्याल से दोनों ही एक दुसरे से परस्पर सम्बन्ध रखते है जहां तक बात है साहित्य की तो उसकी अपनी एक अलग ही परिभाषा है .... आज के दिनांक में बहोत से ऐसे ब्लोगर है जो उच् कोटि के साहित्यकार है और साहित्य में अछि दखल रखते है मैं हालाकि उनका नाम नहीं गिनवाना चाहता .... मगर मेरे ख़याल से तो ब्लोगर साहित्यकार हो सकता है .... ब्लोगिंग उसकी पहली पायदान हो सकती है...
जवाब देंहटाएंअर्श
मुझे लगता है कि यह बहस का विषय ही गलत है.
जवाब देंहटाएंपहले तो बात तोड़ लें:
मूलतः साहित्यकार एक लेखक ही होता है- बिना लेखक हुए तो कुछ भी नहीं.
एक लेखक अपनी रचना, विचार और सोच को प्रकाशित, प्रसारित एवं प्रचारित करने के लिए अनेकों माध्यम का इस्तेमाल करता है जो कि एक पांडुलिपि से लेकर पुस्तक, प्रिंट मिडिया या अन्तरजाल कुछ भी हो सकता है या सबका का एक साथ इस्तेमाल भी किया जा सकता है.
यदि लेखक अपनी रचना को अन्तरजाल के माध्यम से प्रकाशित, प्रसारित और प्रचारित करता है और इस हेतु ब्लॉग का इस्तेमाल करता है, तो वह लेखक ब्लॉगर भी कहलाया. मात्र ब्लॉगर हो जाने से वह लेखक न रहा, अतः साहित्यकार नहीं हो सकता, यह सही नहीं है और न ही तर्क संगत लगती है.
अब जिस तरह सारे लेखक साहित्यकार नहीं माने जाते, उसी तरह इसे भी उन्हीं गुण धर्मों के आधार पर विभाजित कर लें वरना तो कल को ब्लॉगर के कवि होने पर प्रश्न चिन्ह लग जायेगा. लगता है अभी कवियों में साहित्यकारों वाली दबंगता नहीं, इसीलिए इस लड़ाई में शामिल नहीं या फिर कवि और साहित्यकार कहीं एक ही तो नहीं, दोनों ही तो लेखक हैं और मैं बेवजह उन्हें दो किये दे रहा हूँ जैसे यहाँ हो गया-साहित्यकार एवं ब्लॉगर.
मेरी समझ का दायरा जरा संकीर्ण है-शायद मैं ठीक से न समझा हूँ या समझा पाया हूँ तो बस, इसे मेरी सोच मान कर छोड़ दिया जाये.
अपना मत रखा है. आप स्वतंत्र हैं अपने विचार बनाने को और अपनी बात कहने को. मेरी शुभकामनाऐं.
आजकल के साहित्य में शब्दों की इतनी खतरनाक उठा पटक होती है की मेरे जैसा आम इंसान उस को समझ ही नहीं पाता...ऐसे किसी भी साहित्य से मैं जुड़ नहीं पाती ....हाँ ब्लॉग में जो कुछ भी लिखा जाता है उसे मैं पड़ भी लेती हूँ समझ भी लेती हूँ ....
जवाब देंहटाएंअभिव्यक्ति का शब्द-रुप साहित्य है। चाहे लिखित हो या मौखिक।
जवाब देंहटाएंआधुनिक काल में नई-नई विधाएँ बनीं, अभिव्यक्ति का विस्तार हुआ।
नए नियम बने तो पुराने टूटे या छोड़े। सब व्यक्त करने की कला है।
किसी दवाई के साथ आया पर्चा जिसमें उस दवाई के बारे में लिखा होता है वह भी उसका साहित्य ही कहलाता है जो ...प्रकार है।
चिट्ठा लेखन नई विधा है या नया प्रकाशन प्रकार है? ( हमने लिखा था- http://pasand.wordpress.com/2008/04/14/way-of-publishing/)
विधाएँ तो वही हैं - कविता, कहानी, गीत , यात्रा-संस्मरण, रिपोर्ताज इत्यादि-इत्यादि।
काव्य-शास्त्र और साहित्य-शास्त्र बाद में बने होंगे पहले अभिव्यक्ति ही हुई होगी। ब्लॉग अभिव्यक्ति प्रकाशित करने का माध्यम है इसलिए साहित्य से पृथक नहीं है। थोड़ी देर लगेगी यह होने में।
खड़ी बोली साहित्य को स्थान बनाने में भी जूझना पड़ा था।
...तब ब्लॉग में इतने अच्छे-अच्छे साहित्यकार क्या कर रहे हैं जी?
जवाब देंहटाएंलेकिन हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि जिस तरह हर दाढ़ीवाला टैगोर नहीं होता उसी तरह कुछ लाइनें जोड़ लेने वाला कवि नहीं होता. साहित्यकार कौन होता है इस पर कोई बहस नहीं है. प्रश्न ब्लोगर का भी नहीं है बल्कि उससे कहीं अधिक गंभीर है.
समझ लीजिये मयंक जी, जो भी आपको लगे; वही साहित्यकार है. विस्तार में जाने की गुंजाइश नहीं है और फ़िलवक्त जरूरत भी नहीं.
माफ़ किजियेगा शाश्त्री जी, आपने यह सवाल या कहें कि बहस ही गलत ऊठादी है.
जवाब देंहटाएंसाहित्य,साहित्यकार, ब्लागर, कवि ये कोई युनिवर्सिटी प्रदत डिग्रियां नही हैं.
मेरी समझ से ये हर इन्सान के लिये अलग अलग हैं. एक लेखक जो मेरे लिये बहुत बडा साहित्यकार है वो आपके लिये एक धेले का हो सकता है.
अब आपने राय मांगी है तो जरुर दूंगा. मेरी राय मे साहित्यकार कोई एक फ़र्में मे फ़िट नही हो सकता. आप जिसका लेखन पसंद करते हैं आपके लिये वही साहित्यकार होगा.
अब मैने समीर जी की कविता " मेरी मां लुटेरी थी" पढी है तब से मेरे लिये वो महान कवि हैं. इसका मतलब ्ये नही कि उनसे बडा कवि कोई दूसरा नही होगा. पर मेरे लिये तो वो ही हैं.
तो इस बारे मे आपको दुसरों से राय लेने की जरुरत नही है, आप जिसे साहित्यकार मानते हैं आपको उसे ही मानना चाहिये.
मेरी समझ से किसी से इस बारे मे राय मांगना ही सिद्धांत: गलत है. आप की पसंद आखिर आपकी है. दुसरे की पसंद दुसरे की है. और साहित्यकार शब्द को तो कोई आज तक भी डिफ़ाईन नही कर पाया.
अब आप बताईये हमको आप क्या कहेंगें?
रामराम.
आदरणीय साहित्यकारों और प्रिय ब्लौगरों, सब कुछ बदलता जा रहा है, दुनिया बदल रही है, लोग बदल रहे हैं, लिखने-पढ़ने-सुनने-सुनाने का अंदाज़ बदलता जा रहा है. इन बहसों में क्या रखा है!?
जवाब देंहटाएंयह मेरा व्यक्तिगत विचार है जरूरी नहीं कि सब सहमत हों .. पर जैसा कि अधिकांश टिप्पणीकर्ताओं ने कहा है .. इस बात से मैं भी सहमत हूं कि अभिव्यक्ति का शब्द रूप ही साहित्य है .. और चूंकि सारे ब्लागर शब्द रूप में ही अपने विचारों को अभिव्यक्त करते हैं .. इसलिए वे निश्चित तौर पर साहित्यकार हैं .. साहित्य सिर्फ कविता और कहानी ही नहीं होती .. जब साहित्य में इतिहास की जानकारी हो सकती है .. भूगोल की जानकारी हो सकती है .. तो सामान्य ज्ञान हो सकता है .. तो निश्चित तौर पर कंप्यूटर की जानकारी देनेवाले अभिव्यक्ति को साहित्य कहा जा सकता है .. इस कारण सभी ब्लागर भाई बहन साहित्यकार हैं .. तीनों ब्लागर भाइयों को 'साहित्यश्री' से पुरस्कृत करने का निर्णय गलत नहीं कहा जा सकता .. पर जिस आधार पर आपने उन्हें पुरस्कृत करने का निर्णय किया है .. वह सर्वमान्य नहीं हो सकता .. क्यूंकि साहित्य से संबंधित किसी पुरस्कार का आधार साहित्य ही होना चाहिए .. एक पहेली के पहले बूझने पर यह पुरस्कार देना ही कुछ लोगों को नहीं पच रहा .. यह तो संयोग भी माना जा सकता है कि आपकी पहेली को जिन तीन लोगों ने पहले बूझा वे ब्लागर निकले .. यदि वे सामान्य पाठक होते जिन्होने कभी कुछ नहीं लिखा .. तब आपका उन्हे 'साहित्यश्री' से पुरस्कृत करने का निर्णय क्या गलत नहीं हो जाता ?
जवाब देंहटाएंहिन्दी ब्लाग एक तरह से अभिव्यक्ति के विभिन्न माध्यमों पर उपलब्ध और निरंतर रचे जा रही विधाओं के दस्तावेजीकरण का एक ऐसा प्रयास है जो व्यक्तिगत होते हुए भी सामाजिक है. इंटरनेट की आभासी दुनिया मे यह एक नए संसार की रचना मे सन्नध है. हिन्दी भाषा का एक नया मुहावरा गढ़ते हुए यह गतिशील और गतिमान है तथा इसकी उपस्थिति और उपादेयता को अनदेखा नहीं किया जा सकता है।इस बारे में मुझे विस्तार से कुछ नहीं कहना है , बस एक दो बातें-
जवाब देंहटाएं१- ऐसी कौन -सी अभिव्यक्ति है जो साहित्य नहीं है ?
२- हिन्दी में मुश्किल यह है कि साहित्यकार, कवि , लेखक,गीतकार, सब अलग-अलग -अलग हैं -'राइटर' या 'क्रियेटर' कहाँ है पता नहीं ?
आप अपनी राय पर दॄढ़ रहें , और क्या !
अब कुछ लिंक्स-
http://kabaadkhaana.blogspot.com/2007/12/blog-post_8800.html?showComment=1197912360000
http://karmnasha.blogspot.com/2008/10/blog-post_15.html
सब का अपना-अपना महत्व है,इस्लिये मै समझता हूं बहस की ज़रूरत ही नही है।
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी,
जवाब देंहटाएंहमारा ऐसा मानना है कि आज ब्लाग जगत में जो लोग ब्लाग में लिखने वालों को साहित्यकार नहीं समझते हैं उसके पीछे वह सोच है जो अपने देश में अब तक साहित्यकारों के लिए रही है। अगर हम दो दशक पीछे मुड़कर देखें उस जमाने को जब देश में इंटरनेट का जमाना नहीं था तब लोग उनको साहित्कार मानते थे जो कवि हैं या फिर साहित्यिक पत्रिकाओं में साहित्यिक लेख लिखते थे। कभी किसी ने किसी लेखक को साहित्यकार माना ही नहीं था। देश की कुछ गिनी-चुनी बड़ी साहित्यिक पत्रिकाओं में ही छपने वालों को साहित्यकार माना जाता रहा है। अब जिनके दिमाग में यही पुरानी बातें भरी हों उनको भला कोई अच्छा लिखने वाला साहित्यकार कैसे लग सकता है। वास्तव में साहित्यकार तो हर अच्छा लिखने वाला होता है। जिसके पास शब्दों का खजाना हो, जो शब्दों की जादूगरी से सबका मन जीतने का क्षमता रखता हो वही होता है असली साहित्यकार। फिर चाहे वह कम्प्यूटर पर लिखे, या फिल्मों पर या फिर राजनीति पर या फिर किसी भी ऐसे विषय पर जो लोगों के दिलों को छू जाए। अब यह कहना कि इसके लेखन में साहित्य कहा है तो यह गलत बात है। वैसे भी जिसको जो समझना है वह वही समझता है आपको अगर कोई पसंद है तो इसका यह मलतब नहीं है कि वह सबको पसंद हो। पसंद अपनी-अपनी है। वैसे इस दुनिया में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जिसको सब पसंद करते हैं उनको वो पसंद नहीं करते हैं। ऐसे लोगों पर अपनी पसंद लादी भी नहीं जा सकती है। एक बात और जिसके पास जितनी समझ होगी वह उतनी ही बात करेगा ऐसे में किसी की बात का बुरा मानने का सवाल ही नहीं है। अगर अज्ञानी की बात का ज्ञानी बुरा मानने लगे तो फिर वे ज्ञानी कैसे हुए वे भी तो उसी अज्ञानी के साथ खड़े हो गए न। ऐसे अज्ञानियों का माफ कर देना ही सही है। अगर हम उन अज्ञानियों की बातों को दिल से लगाएंगे तो उनका कुछ नहीं बिगडऩे वाला है दिल हमारा ही दुखेगा। दिल तो हमेशा सच्चे इंसान का ही दुखता है न।
एक वाक्य में मेरा जवाब:ब्लॉगर साहित्यकार भी हो सकता है।
जवाब देंहटाएंब्लॉग और साहित्य में कुछ समानतायें:ब्लॉग और साहित्य दोनों ही अभिव्यक्ति के साधन हैं। दोनों ही "लिखे" और "पढ़े" जाते हैं। दोनों ही विविध विषयों के गिलाफ में चढ़ाये जा सकते हैं।
मेरी व्यक्तिगत राय में साहित्य क्या?मैं अपने आपको साहित्य से उतनी ही दूर मानता हूँ जितना बंदर अपने आप को अदरक के स्वाद से। लेकिन मेरी भी एक व्यक्तिगत राय है। साहित्य अकसर उसे कहते हैं जो कागज पर छपे। छपने तक पहुँचने से पहले रचना को कई पड़ावों से गुजरना पड़ता है। कुछ बेहतरीन रचनायें ही ये पड़ाव पार कर पाती हैं।
मेरी व्यक्तिगत राय में ब्लॉग क्या? दूसरी ओर ब्लॉग कोई भी लिख सकता है। कैसे भी विषय पर कैसी भी पोस्ट लिखी जा सकती है। तुरंत प्रकाशित भी हो जाती है। अत: कचरा ज्यादा होता है, और गुणवत्ता कम ही पोस्टों में देखने को मिलती है। (यहाँ गुणवत्ता मैं उसे कहता हूँ जो मेरी व्यक्तिगत राय में अच्छी रचना हो - वही रचना आपके लिये बकवास भी हो सकती है।)
क्या साहित्य और ब्लॉग वाकई अलग-अलग हैं?कागज पर छपने वाले साहित्य और कंप्यूटर की स्क्रीन पर दिखने वाले ब्लॉग में अब अंतर धीरे-धीरे कम रहा है। जहाँ अशोक चक्रधर जैसे जाने माने साहित्यकार ब्लॉगर बन रहे हैं वहीं ब्लॉगरों की पोस्ट अखबारों और पत्रिकाओं में स्थान पा रही है। ऐसे में आप ब्लॉग और साहित्य को अलग-अलग करके नहीं देख सकते हैं, दोनों एक ही रुख के आयाम हैं।
साहित्य के धनी और शब्दों के शिल्पियों,
जवाब देंहटाएंचर्चा में भाग लेने वाले सभी ब्लागर मित्रों,
मैं आपको प्रणाम करता हूँ।
आपने मन और विचारों से विस्तार में जाकर इस खुली चर्चा को दिशा प्रदान की।
दर्पण कभी झूठ नही बोलता और आपने सत्य को उजागर कर दिया है।
मैं तो इसके लिए केवल एक शब्द ‘धन्यवाद’ ही कह सकता हूँ ।
आगे कभी अवसर आया तो ‘साहित्य शारदा मंच, खटीमा’ कुछ और साहित्यकारों को भी
‘‘साहित्य-श्री’’ की उपाधि से समलंकृत करेगा।
जो सामने वाले को कुछ नहीं समझते........उनकी बात क्या करनी.......जो सबका सम्मान करते हैं......उनकी नज़र में ब्लोगर बंधू भी साहित्यकार ही हैं........अलबत्ता कहीं-कहीं दूसरी अभिरुचियों से प्रेरित चीज़ें भी सामने आती हैं........उन्हें साहित्य की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता.....रखा जाना भी नहीं चाहिए....बाकी जैसे सबकी मर्ज़ी .....अपन चीज़ ही क्या हैं....!!
जवाब देंहटाएंआपने एक पोस्ट लिखी , एक अनाम कमेन्ट आया , आप ने जवाब दिया , मैने अपनी राय जाहिर की , आप को नहीं पसंद आयी । जरुरी नहीं हैं की मेरी कही हर राय आप को पसंद आये और सही लगे उसी तरह जरुरी ये भी नहीं हैं की जो कुछ आप करे वो मुझे सही लगे ।
जवाब देंहटाएंअब बात आप के पुरूस्कार देने की हैं , आप को अधिकार हैं आप जिसको चाहे पुरूस्कार दे साहित्यश्री से लेकर कोई भी उपाधि दे क्युकी "आप दे रहे हैं " । आप कौन हैं मै आप को नहीं जानती { बुरा ना माने पूरा पढे } शायद बहुत से जानकर { हिन्दी साहित्य के } भी आप को ना जानते हो और इस पुरूस्कार को तो छोड़ ही दे , आज भी ब्लॉग से ज्यादा प्रिंट मीडिया को लोग पढ़ते हैं ।
मै समीर और आशीष को जानती हूँ कैसे क्युकी वो ब्लॉगर हैं , प्रिंट मीडिया मे भी बहुत से लोग उनको ब्लॉगर की तरह से ही जानते हैं । हाँ अभी समीर की एक अच्छी किताब आयी हैं लेकिन कितने लोग उनको उस किताब से जोड़ कर जानते हैं , ज्यादा लोग समीर को "उड़न तश्तरी " की तरह जानते हैं ।
और इसी हिन्दी ब्लोगिंग मे बहुत से ऐसे ब्लॉगर हैं जो किसी ना किसी रूप से हिन्दी साहित्य से जुडे हैं , वो ब्लॉग मे केवल और केवल अपने लिखे को ज्यादा प्रचार प्रसार मिले इस लिये उसको ब्लॉग पर भी पोस्ट करते हैं । लेकिन वो ब्लॉगर नहीं हैं क्युकी ब्लॉग लेखन मे कहीं ना कहीं जब तक एक डायरी का रूप नहीं मिलता यानी वेब लोग तब तक वो ब्लॉग अभिवक्ति का साधन नहीं हैं । हम सब अगर उस पर साहित्य , कथा और कहानी लिखते हैं तो गूगल की दी हुई जगह को ब्लॉग ना लिख कर प्रिंट मीडियम का alternate मानते हैं या बना लेते हैं । अब ब्लॉग पर तुंरत राय मिलने की सम्भावना है सो " बहुत अच्छा " सुनने की लालसा मे कमेन्ट के लिये बैठ जाते हैं । प्रिंट मीडिया मे "जमने " के लिये समय चाहिये ब्लॉग पर नहीं । कोई न कोई बहुत अच्छा कह ही देता हैं ।
मैने कमेन्ट इस लिये दिया क्युकी राय ब्लॉग पर दे सकने का अधिकार आप ने मुझे दिया हैं कमेन्ट खुला रख कर । आप को नहीं पसंद आया आप ने पोस्ट बनायी , लोगो ने फिर राय दी लेकिन किसी ने भी ये नहीं कहा की वो आशीष और समीर और वंदना को साहित्यकार मानते हैं । और अभी तक उन ब्लोग्गेर्स का कोई कमेन्ट नहीं आया जो साहित्य से जुडे हैं बहुत से नाम हैं पर सब चुप हैं ।
बहुत कुछ लिख सकती हूँ पर आज के लिये इतना ही
और मै हिन्दी रोमन से लिखती हूँ कमेन्ट {kament } से लिखा हैं kaement typing error हैं । लेकिन क्या typing error मुझे आप से कम काबिल बनाता हैं ??? ब्लॉग पर प्रूफ़ रीडिंग की सुविधा नहीं हैं और नाहीं हर ब्लॉगर हिन्दी मै phd करके हिन्दी मे पोस्ट लिखता हैं
Respected Shastri ji,
जवाब देंहटाएंI liked the Sarasvati slide show on your blog, but i think Rachna has a valid point.
In my opinion Blogger can be ,i repeat---can be,a SAHITYAKAR, if he writes something HITKAARI . No power on earth ,however, can stop you from distributing "Sahitya Shrees", but please raise the amount a bit----.I am not sahityakaar but i always want to see them rich , fat and happy.
Munish
क्या ब्लॉगर साहित्यकार नहीं होता है?
जवाब देंहटाएंक्यों नहीं होता है?
अवश्य होता है!
मयंक जी का कहना बिल्कुल सही है!
लेकिन सभी ब्लॉगर साहित्यकार नहीं होते हैं!
एक विस्तृत मँच पर अभिव्यक्ति की आजादी हमें ब्लॉग की दुनिया में आकर मिली | कोई कविता , कहानी , गीत, ग़ज़ल लिखता है , कोई विभिन्न विषयों पर अच्छे लेख लिखता है , कोई कार्टून , पहेली या जानकारियाँ देता है , अच्छा है हर कोई अपने प्रिय विषय में महारथ हासिल करता जाता है | पुरस्कार प्रतियोगिता रखने में कोई बुराई नहीं है , 'साहित्य श्री ' पुरस्कार नाम से ही बड़ा है , इसीलिए बेनामी टिप्पणी करने वाले के दिल में शोर उठा होगा कि ये इतना सहज ही कैसे निर्णीत हो गया | अब टिप्पणी की आजादी भी तो इसी मँच पर है , और शास्त्री जी आपको भी एक खुली बहस रखने का विषय दे गई | हम तो ' जियो और जीने दो ' वाली उक्ति में विश्वास रखते हैं , अलग खड़े होकर देख लेते हैं कि माजरा क्या है !
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग पर आते ही सबसे पहले नीचे हिंदी के टूल पर पहुँच जाते हैं , फिर स्क्रॉल कर के ऊपर पोस्ट पर जाना पड़ता है , देखिये क्या गड़बड़ है ? हिंदी टूल भी काम नहीं कर रहा है |
आदरणीय शास्त्री जी,
जवाब देंहटाएंमाथापच्ची में भाग लिया और फिर उसका परिणाम देखा, खुश हुई और सबको बताया भी, ये खुश होने की इंतेहा थी. कल फिर आपकी रचना पर टिप्पणी देने के लिये आपके ब्लौग पर आई तो देखा, कि यहां तो हम तीनों को लेकर भारी जंग छिडी है.... मेरी समझ में ही नहीं आया कि रचना जी की आपत्ति का क्या जवाब दिया जाये? वे किसी भी ब्लौगेर के बारे में कितना जानतीं हैं? अच्छा हो कि वे अपनी तरफ से साहित्कार की परिभाषा ज़रूर प्रतिपादित करें. खैर कुछ भी हो, रचना जी ने एक और गलती की है, वो ये कि अनजाने में ही इस मुद्दे को उठा कर हमें काफी ख्याति दिला दी है. उन्हे मेरा धन्यवाद.
vandana
जवाब देंहटाएंi only speak what I FEEL IS RIGHT . if you want to become popular because of my mistake or someone elses mistake then its your choice i have no problem but as far as i recall those who are sahityakaar they dont run after popularity , they run after knowledge , how to gain it and how to share it .
this is last comment in this context
आप को ब्लॉगर से साहित्यकार बना दिया गया हैं -- तालियाँ .......
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