कल्पनाओं में आओगे तो गीत सरस सरसेंगे।
बन कर बदली छाओगे तो, नीर सरस बरसेंगे।।
बुझे हुए अंगारों में तो, केवल राख मिलेगी।
शमशानों में ढूँढोगे तो, केवल खाक मिलेगी।।
मुझको पाओगे मेरी ही, रचना की परवाजों में।
मधुरिम शब्दों में पाओगे, गीतों की आवाजों में।।
जो बोया जाता है, उसको ही है काटा जाता।
कर्मों के अनुसार, पुण्य-फल को है बाँटा जाता।।
बेहोशी में पड़े रहे तो, प्राण निकल जायेंगे।
प्यार भरी मदहोशी में, अरमान फिसल जायेंगे।।
मौसम के काले कुहरे को, जीवन में मत छाने दो।
सुख-सपनों में कभी नही, इसको कुहराम मचाने दो।।
जो बोया जाता है, उसको ही है काटा जाता।
जवाब देंहटाएंकर्मों के अनुसार, पुण्य-फल को है बाँटा जाता।।
बहुत सार्थक बात कही आपने.
रामराम.
जो बोया जाता है, उसको ही है काटा जाता।
जवाब देंहटाएंकर्मों के अनुसार, पुण्य-फल को है बाँटा जाता।।
sachhi aur sunder baat keh di,yahi jeevan hai.
jeevan jeena sikhati hai aapki kavita.sundar bhav.
जवाब देंहटाएंमुझको पाओगे मेरी ही, रचना की परवाजों में।
जवाब देंहटाएंमधुरिम शब्दों में पाओगे, गीतों की आवाजों में।।
जो बोया जाता है, उसको ही है काटा जाता।
कर्मों के अनुसार, पुण्य-फल को है बाँटा जाता।।
बहुत ही बेहतरीन और सच्चाई पर आधारित हे आपकी ये नज्म बहुत बधाई
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता के लिए
जवाब देंहटाएंबधाई।
बुझे हुए अंगारों में तो, केवल राख मिलेगी।
जवाब देंहटाएंशमशानों में ढूँढोगे तो, केवल खाक मिलेगी।।
बढिया है।
बहुत सुंदर,
जवाब देंहटाएंबहुत बधाई.
SHASTRI JI.
जवाब देंहटाएंAAPNE BAHUT ACHHI KAVITA
PUBLISH KEE HAI.
BADHAYEE
बहुत सुंदर रचना है ... धन्यवाद।
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