उत्तर-प्रदेश के नैनीताल जिले के काशीपुर शहर (यह अब उत्तराखण्ड में है) से धुमक्कड़ प्रकृति के बाबा नागार्जुन का काफी लगाव था।
सन् 1985 से 1998 तक बाबा प्रति वर्ष एक सप्ताह के लिए काशीपुर आते थे। वहाँ वे अपने पुत्र तुल्य हिन्दी के प्रोफेसर वाचस्पति जी के यहाँ ही रहते थे। मेरा भी बाबा से परिचय वाचस्पति जी के सौजन्य से ही हुआ था। फिर तो इतनी घनिष्ठता बढ़ गयी कि बाबा मुझे भी अपने पुत्र के समान ही मानने लगे और कई बार मेरे घर में प्रवास किया।
प्रो0 वाचस्पति का स्थानानतरण जब जयहरिखाल (लैन्सडाउन) से काशीपुर हो गया तो बाबा ने उन्हें एक पत्र भी लिखा। जो उस समय अमर उजाला बरेली संस्करण में छपा था। इसके साथ बाबा नागार्जुन का एक दुर्लभ बिना दाढ़ी वाला चित्र भी है। जिसमें बाबा के साथ प्रो0 वाचस्पति भी हैं। बाबा ने 15 अक्टूबर,1998 को अपना मुण्डन कराया था। उसी समय का यह दुर्लभ चित्र प्रो0 वाचस्पति और अमर उजाला के सौजन्य से प्रकाशित कर रहा हूँ।
बाबा अक्सर अपनी इस रचना को सुनाते थे-
खड़ी हो गयी चाँपकर कंगालों की हूक
नभ में विपुल विराट सी शासन की बन्दूक
उस हिटलरी गुमान पर सभी रहे हैं मूक
जिसमें कानी हो गयी शासन की बन्दूक
बढ़ी बधिरता दस गुनी, बने विनोबा मूक
धन्य-धन्य, वह धन्य है, शासन की बन्दूक
सत्य स्वयं घायल हुआ, गई अहिंसा चूक
जहाँ-तहाँ ठगने लगी, शासन की बन्दूक
जले ठूँठ पर बैठ कर, गयी कोकिला कूक
बाल न बाँका कर सकी, शासन की बन्दूक
बाबा की इस ओजस्वी रचना को पढवाने के लिये आभार.
जवाब देंहटाएंरामराम.
नागार्जुन साहब मैं बहुत बड़ा प्रशंसक हूँ, उनकी रचनाओं में अद्वितीयता है।
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तख़लीक़-ए-नज़र
vachaspati ji ab kahan hai? kaise hain? pahle to unke bare main akhbaar mein padne ko mil jata tha....aajkal nahin milta...
जवाब देंहटाएंबाबा नागार्जुन की इस बेहतरीन रचना को पढ़वाने का आभार.
जवाब देंहटाएंपंक बना हरिचंदन
जवाब देंहटाएंमेघ बजे!
baba ki is behtrin rachna padhwane ke liye hardik dhanyavaad.
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