सावन में बादल का छा जाना, अच्छा लगता है।
अल्पनाओं में रंगों का आ जाना, अच्छा लगता है।।
सपनों में ही मन से, मन की बातें हो जाती थी।
चितवन की तिरछी चालों से, मातें हो जाती थी।
भूली-बिसरी यादों को पा जाना, अच्छा लगता है।।
कभी रूठना, कभी मनाना, मान-मनव्वल होती थी।
गाना हो या हो रोना, वो सबमें अव्वल होती थी।
दर्पण में भोली छवि का भा जाना, अच्छा लगता है।
कितना ही बिसरायें, वो क्षण याद बहुत आते हैं।
प्रेम-प्रीत में सने हुए, सम्वाद बहुत भाते हैं।
कभी-कभी तीखा भोजन खा जाना, अच्छा लगता है।
आदरणीय शास्त्री जी!
जवाब देंहटाएंआप अपनी हाजिर जवाबी से चूकते नही हैं। आखिर अल्पना जी को जवाब दे ही दिया।
अच्छा कलाम पेश किया है।
जवाब देंहटाएंमैं आपकी कलम का कायल हो गया हूँ।
मुबारकवाद।
मयंक जी!
जवाब देंहटाएंरचना सुन्दर बन पड़ी है।
बधायी स्वीकार करें।
गीतों की श्रंखला में आपका
जवाब देंहटाएंयह प्रणय-गीत लाजवाब है।
बधाई।
सुन्दर रचना प्रकाशित करने के लिए,
जवाब देंहटाएंधन्यवाद।
भैया मयंक जी!
जवाब देंहटाएंइतनी जल्दी गीत गढ़ दिया और
प्रकाशित भी कर दिया।
बधाई।
कल्पनाओं की नगरी में खो जाना,
जवाब देंहटाएंअच्छा लगता है।
मीठी बातों में उनका हो जाना,
अच्छा लगता है।
बधायी स्वीकार करें।
भाई शाश्त्री जी क्या कहूं? दो गुणी जनों की संगत मे आनन्द ही पैदा होता है. सो वाकई आनन्द आगया/ बहुत शुभकामनाएं आपको.
जवाब देंहटाएंरामराम.
ACHHI TUKBANDI .... BADHAAYEE AAPKO..
जवाब देंहटाएंARSH
सुन्दर्।
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया रहा ... बधाई स्वीकारें।
जवाब देंहटाएंaap to geeton ke badshah hain.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा...
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