एक अप्रैल यूँ तो अन्तर्राष्टीय मूर्ख दिवस हर साल ही आता है। परन्तु मुझे इस दिन गुलबिया दादी की बहुत याद आती है। बात आज से 40 वर्ष पुरानी है। मैंने उन दिनों इण्टर की परीक्षा दी थी। नजीबाबाद के मूर्ति देवी सरस्वती इण्टर कालेज के प्रधानाचार्य श्री आर0एन0केला थे। जो लोकप्रिय होने के साथ-साथ अपने उच्च आदर्शों के लिए भी जाने जाते थे। मेरा चचेरा भाई जयपाल बचपन में काफी शैतान था। उसने इस वर्ष फस्र्ट अपैल माने का अनोखा अन्दाज निकाल लिया था। एक अप्रैल को सुबह-सुबह उसने मिट्टी की प्याली में रेत भरा और उसके ऊपर दही और बूरा ठिड़क दिया। अब वह इस प्याली को लेकर गुलबिया दादी के पास गया। बड़े प्यार से दादी को आवाज लगायी । वह दादी से बोला- ‘‘दादी! आज केला जी मर गये हैं। वहाँ दही बूरा खिलाया जा रहा था। मैं तुम्हारे लिए भी ले आया हूँ।’’ अब तो गुलबिया दादी बड़ी खुश हो गयी। बोली- ‘‘मैं अभी मुँह धोकर आती हूँ।’’ दादी जैसे ही मुँह धोकर कर आयी। जयपाल ने रेत भर दही-बूरे की प्याली उसे पकड़ा दी। दादी दही-बूरा खाने को बड़ी उतावली थी। उसने जैसे ही एक कौर खाया। मुँह रेत से भर गया। गुलबिया दादी का स्वभाव चिड़चिड़ा होने के बावजूद वह बच्चों से बहुत लगाव रखती थी। रेत मिला हुआ दही-बूरा खाते ही दादी तो जैसे पागल ही हो गयी थी। उसने जयपाल को गाली देनी शुरू कर दी और तुरन्त ही उसके पिता श्री मक्खन सिंह के पास रेत से भरी दही-बूरे की प्याली लेकर चली गयी। बोली- ‘‘मक्खन! तेरे बेटे जयपाल ने मुझ बुढ़िया के साथ यह हरकत की है।’’ गुलबिया की बात सुनकर चाचा जी ने जयपाल को बुलाया और जोर से डाँटने लगे। उन्होंने जयपाल से पूछा- ‘‘तूने ऐसी हरकत चाची के साथ क्यों की है?’’ जयपाल ने उत्तर दिया- ‘‘पिता जी! आज फस्ट अप्रैल है।’’ अब तो मक्खन चाचा जी ने हाथ में सण्टी उठा ली और जयपाल को पीटना शुरू कर दिया। बोले- ‘‘अबे! तुझे फस्ट अप्रैल ही मनाना था तो किसी पढ़े-लिखे को बे-वकूफ बनाता। इस बुढ़िया के साथ क्यों फस्ट अप्रैल मनाया?" उस दिन से जब भी एक अप्रैल आती है मुझे गुलबिया दादी और जयपाल की याद आ जाती है। |
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बुधवार, 1 अप्रैल 2009
"गुलबिया दादी की बहुत याद आती हैं।" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक)
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फस्ट अप्रैल का शानदार तोहफा।
जवाब देंहटाएंमुबारकवाद।
फस्ट अप्रैल की रोचक घटना के लिए,
जवाब देंहटाएंबधाई।
गुलबिया दादी और जयपाल ka kissa majedaar laga.
जवाब देंहटाएंमूर्ख-दिवस की बधाई।
जयपाल ने रेत भर दही-बूरे की प्याली उसे पकड़ा दी। दादी दही-बूरा खाने को बड़ी उतावली थी। उसने जैसे ही एक कौर खाया। मुँह रेत से भर गया। गुलबिया दादी का स्वभाव चिड़चिड़ा होने के बावजूद वह बच्चों से बहुत लगाव रखती थी। रेत मिला हुआ दही-बूरा खाते ही दादी तो जैसे पागल ही हो गयी थी। उसने जयपाल को गाली देनी शुरू कर दी और तुरन्त ही उसके पिता श्री मक्खन सिंह के पास रेत से भरी दही-बूरे की प्याली लेकर चली गयी। बोली- ‘‘मक्खन! तेरे बेटे जयपाल ने मुझ बुढ़िया के साथ यह हरकत की है।
जवाब देंहटाएंROCHAK SANSMARN HAI.
MOORKH DIVAS MANGAL-MAY HO.
INTENATIONAL FOOL DAY KI MUBARAKVAD.
जवाब देंहटाएंऐसे कामों के लिये हमको बचपन मे बडा इनिशियल एडवांटेज मिला करता था.:)
जवाब देंहटाएंरामराम.
Bahut hasaya...
जवाब देंहटाएंbahut badhiya sansmaran........wakai aise hi to april fool manaya jata hai.
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