सतयुग हो या कलियुग हो, या हो द्वापर या त्रेता।
हर युग में ही पैदा, होते रहते हैं कुछ नेता।।
नेता उसको कहते, जो जनता को कुछ है देता।
किन्तु आज का नेता तो, जनता का सब ले लेता।।
किस नेता की बात करूँ, और लिखूँ कहानी किसकी।
ऐसा नेता ढूँढ रहा हूँ, छवि उज्जवल हो जिसकी।।
ज्यादातर तो ऐसे हैं, जो करते माँ से गद्दारी।
जननी-जन्मभूमि से ज्यादा, जिनको कुर्सी प्यारी।।
कुछ ऐसे नेता भी थे, जो अब तक पूजे जाते हैं।
हर युग में ये राम-कृष्ण, गांधी-इन्दिरा कहलाते हैं।।
मातृ-भूमि के लिए यही, जीवन के सुमन चढ़ाते हैं।
भारत भाग्य विधाता बन, ये माँ का नाम बढ़ाते हैं।।
अब तक इनके जैसा ही, मैं नेता खोज रहा हूँ।
उसके ऊपर महाकाव्य, रचने की सोच रहा हूँ।।
बहुत सही लिखा है।ऐसे नेता बहुत मिल जाएगे।
जवाब देंहटाएंक्या बात है साहब बहुत ही बढ़िया!
जवाब देंहटाएंनेता हो गए अभिनेता
जवाब देंहटाएंअभिनेता हो गए नेता
सही है..
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी !
जवाब देंहटाएंआपने माहौल के हिसाब से यह शायरी अपने ब्लाग पर लगाई है। मुबारकवाद।
आजकल तो कोई नेता मेरी नजर में जँच नही रहा है। यदि कोई कसौटी पर खरा उतरा तो उसकी सिफारिस कर दूँगा।
जवाब देंहटाएंमयंक जी !
जवाब देंहटाएंइस रचना को मैंने आपके मुख से 20-25 साल पहले सुना था। आज आपके ब्लाग पर देखा तो पुरानी यादें ताजा हो गयीं।
रचना सुन्दर है।
जवाब देंहटाएंबधाई।
अच्छी रचना के लिए,
जवाब देंहटाएंबधाई।
बेहद सुंदर और सटीक लिखा आपने.
जवाब देंहटाएंरामराम.
एकदम सही लिखा...
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