आज कबाड़ी को बेचने के लिए रद्दी छाँट रहा था।
उसमें न जाने कितने दशक पुरानी कापी का एक पन्ना मिला।
उसमें मेरी यह रचना लिखी हुई थी। आप भी पढें-
यदि
‘‘घर पर मान,
तो बाहर भी सम्मान’’
बहुत पुरानी है
यह उक्ति,
परन्तु
मुझे लगती है,
वेद जैसी ही एक सूक्ति,
घर पर दाल,
तो बाहर भी दाल,
और
यदि घर पर कंगाल,
तो बाहर भी
हर वस्तु का अकाल,
हमारी राष्ट्र-भाषा हिन्दी,
भारत-माता के माथे की बिन्दी,
जब अपने ही घर में उपेक्षित है,
तो बाहर वालों से,क्या अपेक्षित है?
waah ..kya baat kah di aapne to.sach aaj halat to yahi hai hamari rashtriya bhasha ke.ek katu satya ko ujagar kiya hai aapne.dhanyavaad.
जवाब देंहटाएंहमारी राष्ट्र-भाषा हिन्दी,
जवाब देंहटाएंभारत-माता के माथे की बिन्दी,
जब अपने ही घर में उपेक्षित है,
तो बाहर वालों से,क्या अपेक्षित है?
बिल्कुल सही कहा आपने.. हिन्दी भाषा वाकई उपेक्षित होती जा रही है..
हौसला अफजाई की टिप्पणियों के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबस आपके ब्लॉग को पढ़ पढ़ कर लौट जाती रही , टिप्पणी देने की सामर्थ्य मुझमे नहीं है , वैसे भी जिन ब्लोग्स पर बहुत टिप्पणियाँ पहले से ही आ चुकी हों ,मैं समझती हूँ उन्हें मेरी टिप्पणी की जरुरत नहीं , आप तो टिप्पणी भी कविता में लिखते हैं ,आपकी पोस्ट की तारीफ़ भी कैसे की जाए ! आप हर विषय पर छंद सुना सकते हैं |
आज की पोस्ट भी थोड़े में बहुत कुछ कह गई है |
ये बताइए कि आपने टिप्पणियों को साईड बार में कैसे डाला है , जो ब्लॉग खोलते ही दिखने लगती हैं | धन्यवाद
बहुत बढ़िया.
जवाब देंहटाएंMAYANK JI.
जवाब देंहटाएंAAPNE KABADE MEN SE RATN NIKAAL KAR ISKO BLOG PAR PRAKASHIT KIYA HAI.
BADHAI.
शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता के लिए,
मुबारकवाद।
SHSTRI JI!
जवाब देंहटाएंAAP HAR VIDHA MEN SAFALATA SE LIKHTEN HAIN.
YE KAVITA BHI BAHUT ACHHI HAI,
BADHAYEE.
SHSTRI JI!
जवाब देंहटाएंAAP HAR VIDHA MEN SAFALATA SE LIKHTEN HAIN.
YE KAVITA BHI BAHUT ACHHI HAI,
BADHAYEE.
आपने तो अपनी ही बात को गलत साबित कर दिया....देखिये जिस कविता को आपके घर इतने दिनों से मान नहीं मिला था ....आज kitana मान मिल रहा है.......!!
जवाब देंहटाएंमयंक जी,
जवाब देंहटाएंआपकी लगभग हर पोस्ट पर
टिप्पणी करनेवाली वंदना जी के भेजे में
जिस पल यह बात फँस जाएगी,
उस पल मैं यह मान लूँगा
कि आपका लिखना
और
उनका टिप्पणी करना
सफल हो गया!
अक्सर ऐसा ही होता है... कविताएँ पाठक चाहती हैं।
जवाब देंहटाएंजब कबाड़ में से ऐसी रचनाएं निकलें तो.................और क्या कहें..........आपके लेखन के आगे मिझे टिप्पणियों के लिए भी शब्द नहीं मिलते।
जवाब देंहटाएंजब कबाडखाने मे ऐसा माल निकल रहा है तो असली गोदाम खुलने पर तो नायाब हीरे मोती ही मिलेंगे.
जवाब देंहटाएंरामराम.
रद्दी बेचने से पहले और एक बार और खंगाल लें , शायद और भी मसाला छुपा हो। अगली पोस्ट का इंतजार रहेगा।
जवाब देंहटाएंmr ravi
जवाब देंहटाएंpahle apna likhna to sikh lijiye tab jakar doosre ko kuch kahiye.
aap to khud apna blog doosre ki cheejon se sajate hain.
pahle wo soch apne mein paida kijiye.
hum to jaise hain vaise hi hain agar aapko takleef hoti hai to aankhein band kar lijiye.
mat aaiye hamare blog par.koi zabardasti to nhi hai na.
magar kam se kam insaniyat ke gur to jaroor sikh lijiye.
are doosron ke saman se apna ghar sajane wale kabhi kisi aur ke bare mein aisa nhi kaha karte.
aapko kuch kehna to nhi chahti thi ,kafi baar ignore kiya.
phir socha ek baar aapko bhi aaina dikha hi dena chahiye.
बहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंवंदना जी,
जवाब देंहटाएंमैं आपकी किसी भी बात का
बुरा नहीं मान रहा हूँ!
आपको कहने का पूरा हक़ है!
गुस्से में ही सही,
पर आपने कह डाला -
यह बात मुझे अच्छी लगी!
लेकिन इतना तो मैं अब भी कहूँगा
कि अगर आपने
इससे कई गुना गुस्सा मुझ पर
अँगरेज़ी (रोमन लिपि) की जगह
हिंदी (देवनागरी लिपि) में
लिखकर उतारा होता,
तो आपका हिंदी-लेखन
थोड़ा-सा तो सुधर ही जाता
और यह बात मुझे ही नहीं,
अन्य कई साथियों को भी
बहुत अच्छी लगती!
अँगरेज़ी में लिखकर तो
आपने मेरी बात को सही सिद्ध कर दिया
और मेरे द्वारा की गई टिप्पणी
पहले से ज़्यादा बलवती हो गई!
रावेंद्रकुमार रवि
जवाब देंहटाएंaap ko yae adhikaar kisnae diyaa ki aap vandana yaa kisi ko bhi yae bataaye ki kament kis lipi mae likho
bahut sae log roman mae is liyae likgtey haen kyuki wo apni jeevika computer par eglish mae kaam kar karkae chalaatey haen
aur hindi kae samaan kaa matlab yae kab sae hogayaa ko any bhasha mae baat hi naa karo
apnae maansik daayre viksit karae aur dhayaan dae google ne blog sewa uplabdh karayii hae jo ek gaer bhartiyae company haen
agar wo bhi aap ki soch ki hotee to shyaad sab blog english mae hi hotey
afsos haen ki aap is baat par behas kar rahey haen yae jaantey huae bhi ki computer taknik bhi english hee hotee haen
kewal hindi likhnae sae aur pravachan daenae sae agar hindi ko samaan miltaa to kab kaa mil gayaa hota
वंदना जी,
जवाब देंहटाएंमित्र रवि मानसिक दिवालिया हो चुके हैं, आप इन ओछे और छोटे हड़कत पर ध्यान देने के बजाय अपनी लेखनी के माध्यम से विचार का संवाद करें.
मेरे मित्र रवि को हिंदी से कोई सरोकार नहीं, हिंद को ये जानते नहीं बस वेब के इस पन्ने से अपने बाबूगिरी से ऊपर आने का प्रयास है इनका.
बेहतरीन रचना के लिए मयंक जी को आभार.
क्षुद्र प्रतिक्रया के लिए राघवेन्द्र जी से कोई रोष नहीं अपितु द्रवित
ravi ji
जवाब देंहटाएंmaine aapka comment padha aur rachna ji aur rajneesh ji ka bhi.
mere khyal se ab mujhe kuch kahne ki jaroorat hi nhi rahi.
maine apna gussa nhi nikala kyunki main gussa nhi hun balki aapki mansikta ke bare mein soch kar mujhe aapko jawab dena pada.
hum wo bhartiya hain jo apne desh aur apni matribhasha dono ka samman karna jante hain magar sath hi kisi aur desh ki bhasha ka mazak bhi nhi udate.
dhanyavaad.
jo kament visahy sae itar ho unko delte kar daene sae ek bahut badaa faydaa hota haen ki log vishay sae itar kaemnt daena band kar daetey haen
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंकॉपी-पेस्ट करके ही सही,
जवाब देंहटाएंकम से कम रचना सिंह जी ने
मेरा नाम तो हिंदी (देवनागरी लिपि) में लिखा - यह देखकर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई
और दिखाई दी -
आशा की एक नई किरण!
अब ज़रा यह भी पढ़कर देखिए -
"aur hindi kae samaan kaa matlab yae kab sae hogayaa ko any bhasha mae baat hi naa karo"
रोमन लिपि में लिखी गई अपनी इस हिंदी को देवनागरी लिपि में उच्चरित होते देखिए -
"और हिंदी काए समान का मतलब यए कब सए होगया को अन्य् भष मए बात हि ना करो"
अगर आप यह लिखना चाहती थीं -
"और हिंदी के सम्मान का मतलब यह कब से हो गया कि अन्य भाषा में बात ही ना करो"
तो ऐसे लिखा जाना था -
"aur hindee ke sammaan kaa matlab yah kab se ho gayaa ki anya bhaashaa men baat hee naa karo"
मुझे दूसरों के सामान से अपना घर सजानेवाला कहनेवाली वंदना जी क्या मुझे यह बता पाएँगी कि अपने चेहरे पर किसी और का चेहरा लगानेवाले को क्या कहते हैं?
जवाब देंहटाएंऐश्वर्य राय का चेहरा अपने चेहरे पर लगाकर अंतरजाल पर विचरण करनेवाली वंदना जी और उनके सभी समर्थकों के संज्ञान में यह बात अच्छी तरह से आ जानी चाहिए कि मेरा एकमात्र ब्लॉग "सरस पायस" अंतरजाल पर एक हिंदी साहित्यिक पत्रिका के रूप में जाना जाता है!