एक पल में सभी बिखरता है। दूजे पल वही निखरता है।। जिसको चन्दा ने तपन संग में दी हो, जिसको चन्दन ने जलन अंग मे दी हो, दिल का घाव नही भरता है। एक पल में सभी बिखरता है। दूजे पल वही निखरता है।।
काँटों ने ही जिसको पाला हो, बदन में दर्द उभरता है। एक पल में सभी बिखरता है। दूजे पल वही निखरता है।। मिला प्यार फूलों की एक महक से, खिला चमन कोयल की एक चहक से ही, रोगी का सुमन सँवरता है। एक पल में सभी बिखरता है। दूजे पल वही निखरता है।। |
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बुधवार, 29 अप्रैल 2009
‘‘एक पल में सभी बिखरता है, दूजे पल वही निखरता है।’’
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सुन्दर्।
जवाब देंहटाएंसच कहा , मन को बिखरने और मुस्कराने में इतनी सी ही देरी लगती है |
जवाब देंहटाएंमन की बहुत ही सुंदर व्याख्या की है आपने.
जवाब देंहटाएंरामराम.
bahut hi bhavbhini rachna.
जवाब देंहटाएंbade gahre utar kar likhi hai.
सच है....बिखरना तो सचमुच एक पल का ही काम है.. बहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंइस गीत में सजी
जवाब देंहटाएंफूलों की महक
और
कोयल की चहक ने
मन में
गुदगुदी मचा दी!