पहना दो अब मक्कारों को चप्पल-जूतों की माला।
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रविवार, 19 अप्रैल 2009
‘‘पहना दो अब मक्कारों को चप्पल-जूतों की माला।‘‘ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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सम-सामयिक गीत के लिए,
जवाब देंहटाएंबधाई।
ओजस्विता से भरपूर!
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया रचना है।बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई ऐसी ओजपुर्ण रचना के लिये.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत ओजस्वी रचना-बधाई के पात्र हैं आप.
जवाब देंहटाएंरचना बहुत अच्ची लगी।आप मेरे ब्लाग पर आए इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद।आगे भी हर सप्ताह आप को ऐसी ही रचनाएं मेरे तीनों ब्लाग पर मिलेगी,सहयोग बनाए रखिए......
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया।
जवाब देंहटाएंbilkul sahi farmaya aapne.
जवाब देंहटाएंDurust farmaya aapne
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