अब छेड़ो कोई नया राग, अब गाओ कोई गीत नया। सुलगाओ कोई नयी आग, लाओ कोई संगीत नया। टूटी सी पतवार निशानी रह जायेगी, दरिया की मानिन्द जवानी बह जायेगी, फागुन में खेलो नया फाग, अब गाओ कोई गीत नया। पीछे-पीछे आओ, समय अच्छा आयेगा, सोया स्वप्न-सलोना, सच्चा हो जायेगा, करवट बदलेगा नया भाग, अब गाओ कोई गीत नया। मंजिल चल कर पास स्वयं ही आ जायेगी, आशाओं की किरण, नयन में छा जायेंगी, बालो चन्दा जैसा चिराग, अब गाओ कोई गीत नया। |
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बुधवार, 22 अप्रैल 2009
"अब छेड़ो कोई नया राग, अब गाओ कोई गीत नया।" (डा0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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अब गाओ कोई गीत नया...बहुत उमंग भरा गीत. बहुत धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंरामराम.
अच्छी प्रस्तुति,....बालो इक नया चिराग-दिया, अब गाओ कोई गीत नया। अच्छा गीत।
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता.. आभार
जवाब देंहटाएंइस प्रेरक गीत के लिए धन्यवाद....आप बहुत अच्छा लिखते हैं.
जवाब देंहटाएंनीरज
bahut hi aashawadi rachana hai,madhur,bahut badhai.
जवाब देंहटाएंsundar geet.
जवाब देंहटाएंयह किसने छेड़ा राग नया?
जवाब देंहटाएंयह कौन गा रहा गीत नया?
ला रहा कौन मंजिलें पास?
है बँधा रहा अब कौन आस?
कौन सजाने आया सपना?
लगता है यह कोई अपना?
बहुत ही सुन्दर रचना है, मनोहारी!
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