जीवन के हर चौराहे पर, गलियाँ मिल जाती हैं।
मरुथल में भी अनायास, कलियाँ खिल जाती हैं।।
बेहोशी में पड़े रहे तो, प्राण निकल जायेंगे,
पाकर पवन झकोरें, सोये गुल खिल जायेंगे,
सरिता की धाराएँ, खारे जल में घुल जाती हैं।
मरुथल में भी अनायास, कलियाँ खिल जाती हैं।।
सफर, सफर है, इसमें यादें आती जाती है,
रिश्तों की बुनियाद, सफर में बनती जाती है,
भूली-बिसरी बात, कहानी में ढल जाती हैं।
मरुथल में भी अनायास, कलियाँ खिल जाती हैं।।
मेंहदी तो सजनी-साजन के, हाथों में रचती है,
उसकी महक हृदय के, कोने-कोने में बसती है,
भँवरे को फिर से, उसकी गुंजन मिल जाती हैं।
मरुथल में भी अनायास, कलियाँ खिल जाती हैं।।
प्रेम अमर है, प्रेम अजर है, उसकी अपनी है भाषा,
ढाई आखर में ही जग की, रची-बसी है जिज्ञासा,
मिलन-यामिनी में, उलझी लड़ियाँ खुल जाती हैं।
मरुथल में भी अनायास, कलियाँ खिल जाती हैं।।
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सोमवार, 6 अप्रैल 2009
"मरुथल में भी अनायास, कलियाँ खिल जाती हैं।" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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सबके जीवन में एक सी बातें सबके अपने अपने ख्याल, आपकी इस गीत नुमा कविता का अलग अंदाज़
जवाब देंहटाएंbehad khubsurat geet,marusthal mein kaliyon ka khilna,sunder
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गीत और लाजवाब कल्पना. शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
सुंदर रचना! बात पते की है।
जवाब देंहटाएंत बहुत सुन्दर रचना है बधाई
जवाब देंहटाएंवाह.....वाह.....।
जवाब देंहटाएंगीत मन को भा गया।
ब्लाग पर छा गया।
बधाई।
शास्त्री जी!
जवाब देंहटाएंआपने बेहतरीन गीत लिखा है।
मुबारकवाद।
मयंक जी!
जवाब देंहटाएंआपने सुन्दर गीत लिखा है।
अपना गीत प्रकाशित कर
पढ़वाने के लिए
मेरी बधाई स्वीकार करें।
अतिसुन्दर,
जवाब देंहटाएंबधाई।
अच्छे प्रतीकों के माध्यम से गीत में सरल भाषा में सीधी-साधी बात कही है।
जवाब देंहटाएंबधाई।
बहुत बढिया लिखा है आपने ... बधाई।
जवाब देंहटाएंमिलन-यामिनी में, उलझी लड़ियाँ खुल जाती हैं।
जवाब देंहटाएंमरुथल में भी अनायास, कलियाँ खिल जाती हैं।।
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति।
बहुत अच्छे ख्याल...
जवाब देंहटाएं