कभी मानना और कभी मनवाना, अच्छा लगता है।
बीती यादों से मन को बहलाना, अच्छा लगता है।।
छोटी बहनें और सहेली जब घर में आ जाती हैं,
गुड्डे-गुड़िया उन्हें खिलाना , अच्छा लगता है।
ठण्ड-गुलाबी, पवन-बसन्ती, जब बहने लगती है,
उछल-कूद कर पतंग उड़ाना, अच्छा लगता है।
उमड-घुमड़ कर जब बादल नभ में छा जाते हैं,
रिम-झिम में खुद को नहलाना, अच्छा लगता है।
बाल्यकाल की करतूतें जब मन पर छा जाती हैं,
बचपन की यादों में खो जाना, अच्छा लगता है।
बिना भूख के पकवानों में भी तो स्वाद नही है,
भूख पेट में हो तो रूखा खाना, अच्छा लगता है।
यौवन आने पर, संगी-साथी के साथ सुहाते है,
सुख का सुन्दर नीड़-बनाना, अच्छा लगता है।
पचपन में जब श्रीमती जी जम कर डाँट रही हों,
तब मिट्टी का माधौ बन जाना, अच्छा लगता है।
नाती-पोते जब घर भर में, ऊधम काट रहे हों,
बुड्ढों का कुढ़ कर रह जाना, अच्छा लगता है।
बहुत ख़ूबसूरत
जवाब देंहटाएंबिल्कुल स्वाभाविक ढंग से आप अपनी बातों को रख देते हैं ... बहुत बढिया लगा।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरती से बात कही गई है.
जवाब देंहटाएंरामराम.
waah waah.....bahut khoob
जवाब देंहटाएंaapke dwara zindagi ko kavita mein is tarah dhaal dena achcha laga.
Waah !! Sahaj manobhavon ko bahut hi sundar dhang se abhivyakt kiya aapne.
जवाब देंहटाएंSundar rachna.
बिल्कुल सरल एवं सुन्दर तरीके से आपने कविता में सम्पूर्ण जीवन को ढाल के रख दिया.....बधाई
जवाब देंहटाएंAntim panktiyaan chhodkar
जवाब देंहटाएंis geet men sab kuchh achchhaa lagtaa hai!
(Mobile se, Bus men)