कल ही की तो बात है। मेरे छोटे पुत्र के लिए एक सज्जन अपनी पुत्री के विवाह का प्रस्ताव लेकर आये। मैंने उनसे पूछा- ‘‘अपनी बिटिया का फोटो और बायोडाटा तो लाये होंगे।’’ उन्होंने कहा- ‘‘ जी सर! आपके यहाँ नेट हो तो अभी दिखा देता हूँ।’’ मैं उन्हे अपने पी.सी. पर ले गया। नेट पर उन्होंने बिटिया का फोटो और बायोडाटा दिखा दिया। मैंने वो अपने कम्प्यूटर पर सेव कर लिया। शाम को जब परिवार के लोगों को इसे दिखा रहा था तो मेरी 5 वर्षीया पोती प्राची ने मुझसे पूछा- ‘‘बाबा जी ये किसका फोटो है?’’ मैंने उत्तर दिया- ‘‘बेटा! ये तुम्हारी चाची जी का फोटो है।’’ मेरी 5 वर्षीया पोती उछल-उछल कर जोर-जोर से कहने लगी-
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सोमवार, 13 अप्रैल 2009
‘‘हमने चाचा की चाची देख ली।’’ (डा0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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‘‘हमने चाचा की चाची देख ली।’’
जवाब देंहटाएंये भाषा की स्वाभाविकता है. हमारे यहां हरयाणे मे जब दामाद आता है तो जब कोई पूछता है कि --आपके यहां कौन आया है? तो जवाब मिलता है -- छोरी का छोरा आया है... ये बिल्कुल हकीकत है.
ये एक सरल और बालसुलभ बात है
रामराम.
प्राची तो खुश होगी ही नयी चाची जो मिलेगी और फिर टाफिया भी मिलेगी ।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब.. बालसुलभ अदा को आपने बहुत अच्छे से परोसा है.. आभार
जवाब देंहटाएंbahut hi masum baat keh di,aur pyari si ladoo hai,chacha ki chachi dekh li,:):)
जवाब देंहटाएंBaal manovigyaan kaa sundar aur sajeev chitran!
जवाब देंहटाएं(Mobile se)
Mayank Ji!
जवाब देंहटाएंCHACHA KI CHACHI HUMEN BHI ACHHI LAGI.
ROCHAK BAL KATHA HAI.
शास्त्री जी!
जवाब देंहटाएंआज तो प्राची जाल जगत पर छा गयी है।
बधाई बिटिया रानी।
जवाब देंहटाएंरोचक संस्मरण।
और भी इसी तरह के लेख लिखें,
जवाब देंहटाएंमयंक जी।
चाचा की चाची का
जवाब देंहटाएंबाल सुलभ संस्मरण अच्छा लगा।
प्राची का चित्र भी बहुत अच्छा है।