(एक बहिन ने मेरे एक संस्मरण ‘‘चालबाजी की भी सीमाएँ होती है।’’ पर यह टिप्पणी की थी।
‘‘संस्मरण प्रेरणादायकों के हों तो रुचते हैं। बीती ताही बिसार दे।’’
उनकी बात का मैंने पूरा ध्यान रखा। परन्तु मूर्ख दिवस पर तो
इस चालबाज का संस्मरण प्रकाशित किया ही जा सकता है।)
बात सन् 1987-88 की है। वैद्य जी मेरे कवि मित्रों में थे। लेकिन महाठग किस्म के व्यक्ति थे। मेरी मझली बहन ने उन दिनों बी0एड0 पास किया था। उसे नौकरी की प्रतीक्षा थी।
श्रीमान वैद्य जी का उन दिनों मेरे परिवार में काफी आना-जाना था। मेरी अनुपस्थिति में वो मेरी माता जी से काफी बतियाते थे।
माता जी ने वैद्य जी से कहा- ‘‘बेटा तुम बड़े नेता हो। मेरी बिटिया ने बी0एड0 पास किया है। कहीं इसकी नौकरी लगवा दो।’’
वैद्य जी तो चाहते ही यही थे कि कोई चिड़िया फँसे और कुछ माल-पानी का जुगाड़ हो जाये।
झट से बोले- ‘‘माता जी! मेरी पं0 नारायणदत्त तिवारी पर सीधी पकड़ है। मैं बहन की नौकरी लगवा दूँगा। परन्तु इसमें पाँच हजार का खर्चा आयेगा। आप अपने पुत्र से बिल्कुल इस बात का चर्चा न करें। नही तो बात नही बन पायेगी।’’
माता जी ने पुत्री के भविष्य को देखते हुए, मुझे कुछ भी नही बताया।
शाम को मेरी श्रीमती जी ने सब बता दिया।
मैंने माता जी से इस विषय में बात की तो- माता जी ने कहा- ‘‘भैया! वैद्य अच्छा आदमी है। उसको पाँच हजार रुपये देने में कोई हर्ज नही है। बेबी की नौकरी तो लग ही जायेगी।’’
इत्तफाक से तभी वैद्य जी भी आ गये।
अब मैंने वैद्य जी की क्लास लेनी शुरू कर दी।
परन्तु वैद्य जी के पास तो हर सवाल का जवाब तैयार रहता ही था।
तपाक से बोले- ‘‘शास्त्री जी! आज फस्ट अप्रैल है ना। माता जी को एप्रिल फूल बनाना था सो बना दिया।’’
बड़े ही अजीब दोस्त थे आपके .
जवाब देंहटाएंऐसे ठगुआ टाइप लोगों से तो सम्बन्ध रखने ही नही चाहिए ।
ग़ज़ब...
जवाब देंहटाएंसचमुच मैं तय नहीं कर पा रहा हूं कि वैद्यजी चालू थे या अप्रैलफूल बना रहे थे...
स्वार्थी मनुष्य के लिए संबंधों का दोहन करना बहुत आम बात है...
दिलचस्प संस्मरण
acha sansmaran...
जवाब देंहटाएंवो तो भाभी जी ने आप तक बात पहुंचा दी वर्ना वैद्यजी अप्रेल फ़ूल बनाने की बजाये पांच हजार की मस्ती ले रहे होते.:)
जवाब देंहटाएंरामराम.
pata nhi kisne kisko april fool banaya magar ye duniya aisi hi hai........swarthi.
जवाब देंहटाएंbach ke rahna padta hai.
मेरा ख्याल है ... उसने एप्रिलफूल नहीं बनाया था ... पर संयोग था ... उसे बहाना मिल गया।
जवाब देंहटाएंबस, बच ही गये समझिये-वरना तो ५ हजार ढील जाते.
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