आज अधिकतर लोग भारत को कुतरने में करने में लगे हैं। जिसे भी देखता हूँ वही इसका कुछ न कुछ नोच ही लेता है और अपनी कर्तव्य परायणता पूरी कर लेता है। इसीलिए मेरा प्यारा देश! उपहास का पात्र बनता जा रहा है।
ताऊ रामपुरिया अक्सर इस पर अपनी कलम चलाते हैं तो मुझे अच्छा लगता है।
इस कड़ी को मैं एक कथानक के माध्यम से स्पष्ट कर रहा हूँ। जो बचपन में मेरे ताऊ जी मुझे सुनाया करते थे।
एक प्राईमरी स्कूल के मास्टर साहब थे। वे स्कूल परिसर में ही एक टीन शेड में रहते थे।
संयोग से दो दिन बाद स्कूल में डिप्टी साहब का दौरा होने वाला था।
मास्टर साहब ने तुरत-फुरत बाजार जाकर कुरते-पाजामे का कपड़ा लिया और दर्जी को सिलने के लिए दे आये। अगले ही दिन दर्जी ने उनका कुरता पाजामा सिल कर उनके घर पहुँचा दिया।
मास्टर साहब ने दर्जी के जाने के बाद इसे पहिन कर देखा तो कुर्ता तो ठीक था परन्तु पाजामा कुछ दो इंच लम्बा हो गया था।
मास्टर साहब ने अपनी पत्नी से कहा- ‘‘भगवान! कल स्कूल में डिप्टी साहब का मुआयना है। मेरा पाजामा 2 इंच काट कर फिर से तुरपाई कर दो।’’
मास्टर साहब की पत्नी ने कहा- ‘‘सुनो जी मेरी फुरसत नही है। बेकार के काम मुझे मत बताया करो।’’
अब मास्टर साहब अपनी बड़ी पुत्री के पास गये और उससे कहा- ‘‘बिटिया रानी! मेरा पाजामा दर्जी ने दो इंच बड़ा सिल दिया है। इसे दो-इंच काट कर तुरपाई कर दो।’’
बड़ी बेटी ने कहा- ‘‘पिता जी! मेरे कल से इम्तिहान होने वाले हैं। आप इसे दर्जी से ही ठीक करा लो।’’
कुछ इसी तरह का बहाना छोटी बेटी ने भी बना दिया।
अब मास्टर जी ने सोचा कि मैं ही इसे 2 इंच काट कर छोटा कर लेता हूँ और उन्होंने पाजामा ठीक करके खूँटी पर टाँग दिया।
इधर मास्टरनी जी को भी ख्याल आया तो उन्होंने भी पाजामामे पर कैंची चला कर ठीक करके फिर से उसी खूँटी पर टाँग दिया।
यही करामात दोनों बेटियों ने भी कर दी और पाजामे को ज्यों का त्यों खूँटी पर टाँग दिया।
अगले दिन जेसे ही डिप्टी साहब के स्कूल में आने की हल-चल हुई तो मास्टर साहब ने जल्दी से कुरता पाजामा पहना और बन-ठन कर कक्षा में आ गये।
छात्र-छात्राएँ मास्टर साहब को देख कर हँसने लगे तो मास्टर जी ने कहा-‘‘देखते नही, डिप्टी साहब मुआयने के लिए आये हैं और आप लोग हँस रहे हैं।"
अब डिप्टी साहब ने भी मास्टर जी की ओर ध्यान दिया तो वह भी हँसते हुए बोले- ‘‘मास्टर जी! पहले अपने को तो देखो। आपने यह जो पहन रखा है, ना तो यह पाजामा है और नही घुटन्ना है।’’
कहने का तात्पर्य यह है कि मेरे देश की भी दशा मास्टर जी के पाजामे से कम नही है।
आज देश के कर्णधार नेता गण ही इसे सबसे ज्यादा कुतरने में लगे हैं।
दूध की रखवाली बिल्ले ही करने में लगे हैं।
सच्ची बात है भैया! राम नाम ....................है।
bahut hi sahi aaklan kiya hai aapne aaj ke halat ka aur hamare desh ke netaon ka.
जवाब देंहटाएंsab kuch aapne kah diya ab kahne ko kuch bacha hi nhi.
अच्छा और सटीक व्यंग है..:) बहुत शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
शास्त्री जी! सुन्दर कथा के माध्यम से देश की स्थिति का सही नक्शा पेश किया है। बधाई।
जवाब देंहटाएंरोचक कहानी, सही चित्रण। बधाई।
जवाब देंहटाएंमयंक जी !
जवाब देंहटाएंमेरी दोनों बेटियों को कहानी बहुत अच्छी लगी।
बधाई।
प्राईमरी के मास्टर साहब के माघ्यम से
जवाब देंहटाएंवर्तमान का सही चित्र।
अच्छा करारा व्यंग।
जवाब देंहटाएंबधाई।
सही नक्शा पेश किया है।
जवाब देंहटाएंमुबारकवाद।
आदरणीय शास्त्री जी ,
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही बात कही है आपने आज हमारे देश के नेता ही देश को घुन की तरह कुतरने में लगे हैं.
इस को रोका कैसे जा सकता है ..इस पर भी हमें विचार करना होगा.
शुभकामनाओं के साथ.
पूनम
इतने सटीक और सलीकेदार अंदाज़ में कही बात कि मज़ा आ गया।
जवाब देंहटाएंसचमुच मास्टर की फरियाद का क्या हश्र हुआ, वही हाल हमारा है...