मुझको काँटों में जीना है, काँटों में मर जाना है।
मेरा स्वभाव काँटों में मुस्काना है।।
कोई चिकित्सक मुझे तोड़ ले, मुझको चाह नही है।
घुट-छन कर मैं बनूँ औषधि, यह भी चाह नही है।।
माला की लड़ियों में शोभा पाने की भी चाह नही।
फूलदान में आदर पा जाने की है परवाह नही।।
पूजा की थाली में सजना, मुझको नही सुहाता है।
प्रतिमा के मस्तक पर रहना, रास नही आता है।।
मुझे तोड़ लेना ऐ माली, कण्टक सेज सुला देना।
बाल सखा को नही चाहता हूँ मैं कभी भुला देना।।
काँटों की चुभन लिए आना है।
काँटों की चुभन लिए जाना है।।
मेरा स्वभाव काँटों में मुस्काना है।।
फूल की यह चाह बहुत पसंद आई.. आभार
जवाब देंहटाएंphool aur kante ka to zindagi bhar ka sath hai
जवाब देंहटाएंkanton se kya darna humko
kanton ke sang hi rahna hai
kanton ke bin soona jeevan
kaanton se hi hamari chitvan
फ़ूल सज्जनता का परिचायक है और सज्जन आदमी हमेशा खुद दुख पाकर भी दूसरों को सुख ही पहुंचाता है. बहुत सुंदर कविता.
जवाब देंहटाएंरामराम.
शास्त्री जी! फूल की चाह पसन्द आयी।
जवाब देंहटाएंमुबारकवाद।
फूल की चाह को आपने
जवाब देंहटाएंशब्द देकर अच्छी रचना प्रस्तुत की है।
बधाई।
"phool aur kante ka to zindagi bhar ka sath hai"
जवाब देंहटाएंMEN VANDANA JI KI TIPPANI SE SHAMAT HOON.
BADHAYEE.
मयंक जी !
जवाब देंहटाएंआपने सही बात कह दी है,
अपनी कविता में।
बधाई।
फूल की चाह लिखने के लिए।
जवाब देंहटाएंबधाई।
फूल की चाह का सही चित्रण।
जवाब देंहटाएंबधाई।
sunder rachna , sarahniya.
जवाब देंहटाएंKaanton men pooraa jeevan gujaarne kee chaah to koee naheen kartaa. Gulaab, Naagfanee aur Babool bhee naheen. Kavigan bhaavnaaon men bahkar pataa naheen kyon aisaa rachte rahte hain?
जवाब देंहटाएं(Mobile se)
रवि भैया ।
जवाब देंहटाएंये तो कवि की कल्पनाएँ हैं।
आपने भी तो अपनी
कल्पनाएँ ही प्रकट की हैं।
सुझाव के लिए धन्यवाद।